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जब विज्ञापनों से कुछ धनराशि प्राप्त कर, विभिन्न की समस्या उत्पन्न हो गयी, किन्तु साध्य की पवित्रता विषयों पर देश भर के मूर्धन्य विद्वानों तथा प्रतिष्ठित तथा उसे प्राप्ति के प्रति तीव्र निष्ठा के कारण साधन लेखकों से कुछ चुने हुए विषयों पर अप्रकाशित शोध- भी सुलभ होते गए । हां, इस सब के कारण ग्रन्थ का पत्रों एवं निबन्धों के एक संग्राह्य संग्रह प्रकाशित करने मुद्रण अवश्य, कई बार स्थगित करना पड़ा, जिस कारण का विचार जागृत हुआ, तो उसका क्रियान्वयन अनेकों सहयोगियों में अधीरता बढ़ने लगी और ऐसा अत्याधिक दुष्कर प्रतीत होता था, तथापि एक पवित्र अनुभव होने लगा कि सम्भवतः यह प्रकाशन पूर्ण न हो कार्य मानकर, प्रत्येक दशा में इस कल्पना को साकार सके । बनाने का निश्चय कर लिया और इस योजना की प्रारम्भिक रूपरेखा बनाकर दो सौ के लगभग पृष्ठ
मुझे प्रसन्नता है कि दो वर्ष पूर्व आयोजित
व्याख्यानमाला के प्रकाशन के रूप में संजोया विचार संख्या वाली एक स्मारिका प्रकाशित करने का विचार कुलपति जी के सम्मुख प्रस्तुत किया । विश्वविद्यालय
"महावीर स्मृति ग्रन्थ" के वृहद् रूप में परिणित हो, के अधिकारियों को आर्थिक साधनों के संग्रहण का कार्य
पूर्ण हो रहा है। इसके क्रियान्वयन में मुझे विभिन्न
सहयोगियों से प्राप्त प्रेरणा एवं आशीर्वाद के लिये मैं अत्यन्त दुष्कर प्रतीत हो रहा था, चूकि विश्वबिद्यालय
उनका कृतज्ञ हूँ । प्रमुखत: लेखकों का, जिन्होंने मेरे के लिये किसी भी मद से इसके लिये धन व्यय करना
निवेदन को स्वीकार कर ग्रन्थ हेतु नवीन एवं अप्रकाशित सम्भव नहीं था । परन्तु जब कुलपतिजी को यह
शोधपत्र अथवा निबन्ध प्रस्तुत कर इस ग्रन्थ की विश्वास दिलाया कि योजना के लिये सम्पूर्ण साधन
योजना को मूर्तरूप देने में सक्रिय सहयोग दिया। जन-सहयोग से जुटाए जाएंगे तो उन्होंने तत्काल स्वीकृति दे दी।
___ मैंने भरसक प्रयास किया है कि उपलब्ध साधनों
का अधिकतम दोहन कर ग्रन्थ को अधिकाधिक उपयोगी प्रकाशन के निश्चय के साथ ही देश के अनेक गणमान्य विद्वानों एवं लेखकों को इस हेतु शोधपत्र एवं निबन्ध
बनाया जा सके, उसे ऐसा स्वरूप प्रदान किया जा
सके जिससे बह दुर्लभ एवं लुप्त ज्ञान भण्डार के कुछ प्रस्तुत करने को निवेदन किया तो अधिकांश ने
महत्वपूर्ण पक्षों पर उपादेय एवं स्थायी महत्व की अत्याधिक समयाभाव के उपरान्त भी मेरे निरन्तर
संग्रहणीय तथा शोषपूर्ण सामग्री प्रस्तुत कर सके; साथ आग्रह को स्वीकार कर योजना को अपना आशीर्वाद
ही उन अथवा उन जैसे विषयों पर शोध-कार्य करने दे दिया। प्रकाशनार्थ प्राप्त सभी शोधपत्र और निवन्धों
हेतु शोधार्थियों को आकर्षित कर सके । के लिये पूर्व विचारित आकार अपर्याप्त था, परन्तु सभी रचनाएं अप्रकाशित, उच्चस्तरीय तथा महत्वपूर्ण ग्रन्थ अपने उद्देश्यों की पूर्ति में कितने अंशों में होने के कारण मैं उनमें से किसी के भी अप्रकाशित सफल हुआ है, इसका वास्तविक मूल्यांकन तो विज्ञ रहने का दुःसाहस, तथा सभी के सदुपयोग का लोभ पाठक एवं समीक्षक-समालोचक ही करेंगे । मैं तो संभरण भी नहीं कर सकता था । अतः योजना का यही कह सकता हूँ कि, मैंने अपने वर्तमान जीवन की विस्तार एवं परिवर्तन कर स्मारिका के स्थान पर महत्वपूर्ण साध मानकर पूर्ण निष्ठापूर्वक, उपलब्ध "महावीर स्मृति ग्रन्थ" के प्रकाशन का निश्चय कर, साधनों में, ग्रन्थ को अधिकाधिक उपयोगी एवं संग्रहणीय लिया; परन्तु इसके साथ ही और अधिक साधन जुटाने स्वरूप प्रदान करने का यथाशक्ति प्रयास किया है,
xxi.
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