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________________ महावीर की प्रतिमायें इलाहाबाद में स्थित पफोसा, देवगढ़ के मन्दिर क्रमांक 21 आदि में सुरक्षित हैं । श्रावस्ती के पश्चिमी भाग में जैन अवशेष प्रचुर मात्रा में मिलते हैं । यहीं पर भगवान संभवनाथ का जीर्ण-शीर्ण मन्दिर है । यहाँ पर अनेकों प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं । 39 जिला गोंडा के महंत से आदिनाथ की एक सुन्दर प्रतिमा उपलब्ध हुई है । पदमासन के नीचे दो सिंह और वृषम हैं। आसन के नीचे कमल है जिस पर आदिनाथ पदमासन पर बैठे हैं । हृदय पर धर्म चक्र बना है । मस्तक के पीछे प्रभामण्डल एवं तीन छत्रों वाला छत्र है । सभी ओर अनेक तीर्थंकर ध्यान मग्न हैं । 10 बरेली जिले के अहिच्छत्र से अनेकों जैन प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं। यहां से उपलब्ध पार्श्वनाथ की एक सातिशय प्रतिमा हरित पन्ना की पद्मासन मुद्रा में विराजमान है । प्रतिमा अत्यन्त सौम्य एवं प्रभावक है। मूर्ति के नीचे सिंहासन के पीठ के सामने वाले भाग में 24 तीर्थ कर प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं ।" कर्नाटक में जैन धर्म का अस्तित्व प्रथम सदी ई. पू. से 11वीं सदी ई. तक ज्ञात होता है । होयशल वंशी नरेश इस मत के प्रबल समर्थक थे । पूर्वकालीन जैन देवालय एवं गुफायें ऐहोल, बादामी एवं पट्टडकल आदि में है । इनके अतिरिक्त जैन देवालय लकुण्डी (लोकिगुण्डी), बंकपुर, बेलगाम, हल्शी, बल्लिगवे, गुण्ड आदि में हैं । ये देवालय विभिन्न देव प्रतिमाओं से विभूषित हैं । इस काल की वृहताकार प्रतिमायें श्रावणबेलगोल, कार्कल एवं वेनूर में स्थापित है । कर्नाटक में पद्मावती सर्वाधिक लोकप्रिय यक्षी रही हैं। 12 यद्यपि पद्मावती का संप्रदाय काफी प्राचीन रहा है: परन्तु 10वीं शती के बाद के अभिलेखीय साक्ष्यों में निरंतर पद्मावती का उल्लेख प्राप्त होता है । कन्नड क्षेत्र में प्राप्त पार्श्वनाथ मूर्ति ( 10वीं11वीं सदी) में एक सर्पफण से युक्त पद्मावती की दो भुजाओं में पदम एवं अभय प्रदर्शित है । 13 कन्नड शोध संस्थान संग्रहालय की पार्श्व मूर्ति में चतुर्भुज पद्मावती, पदम, पाश, गदा या अंकुश एवं फल धारण करती हैं ।" इसी संग्रहालय में चतुर्भुजी पद्मावती की ललितासन मुद्रा में दो स्वतन्त्र मूर्तियाँ हैं। बादामी की गुफा पाँच, के समक्ष की दीवार पर ललित में मुद्रा आसीन चतुर्भुजी यक्षी आमूर्तित है । आसन के नीचे वाहन सम्भवतः हंस है । सर्पफणों से विहीन यक्षी के करों में अभय, अंकुश पाश एवं फल प्रदर्शित हैं । 15 पद्मा वती की तीन चतुर्भुजी कर्नाटक से प्राप्त प्रतिमायें प्रिंस ऑफ वेल्स म्युजियम बम्बई में संरक्षित है ।" 38. भारतीय पुरातत्व एवं कला में भगवान महावीर - शिवकुमार नामदेव, श्रमण, नवम्बर-दिसम्बर 1974। 39. जैन तीर्थ श्रावस्ती - पं. बलभद्र जैन - अनेकांत, जुलाई-अगस्त 1973 । 40. भारतीय प्रतीक विद्या - जनार्दन मिश्र, चित्र संख्या 79 । Jain Education International 41. अहिच्छत्र - श्री बलिभद्र, जैन, अनेकांत, अक्टूबर-दिसम्बर 1973 42. जैनिज्म इन साउथ इन्डिया - देसाई, पी. वी. पृष्ठ 163 | 43. नोट्स ऑन टू जैन मेण्टल इमेजेज - हाडवे, डब्ल्यू एस, रूपम, अंक 17 जनवरी 1924, पृ. 48 44. गाइड टू द कन्नड रिसर्च इन्सटीट्यूट म्युझियम धारवाड़ - 1958 पृ. 19 । 45. जैन यक्षाज ऐण्ड पक्षिणीज- सांकलिया, कलेटिन डेक्कन कॉलेज रिसर्च इन्स्टीट्यूट, खण्ड 9, 1940 पृष्ठ 169 । 46. वही पृष्ठ 158 159 1 १८६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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