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गणिका है । इसके पूर्व 3 वाचना का संकलन हुआ था शंखिका, (4) खरमुही, (5) पेया (6) पीरिपिरियाजो लिपिबद्ध नहीं मिलता। इससे अनुमान लगाया जा शूकर-पुटावनद्धमुखोवाद्य विशेष, (7) पणव-लघु पटह, सकता है कि वे वाचनायें पुनरावर्ती के रूप में मुखाग्रही (8) पटह, (9) होरंभ (10) महाढक्का, (11) मेरी, करा दी गयी होंगी। यदि लेख रूप में होते तो कुछ अंशों (12) झल्लरी, (13) दुदुभि-वृक्ष के एक भाग को में अवश्य मिलते। जैन आगमों के सिवाय अन्य प्रकरणों भेदकर बनाया गया वाद्य, (14) मुरज-शंकटमुखी, में और स्वतंत्र रूप से भी अति सूक्ष्म दृष्टि से लिखे (15) मदंग आदि 60 प्रकार के वाद्यों का उल्लेख गये ग्रन्थ संपूर्ण नहीं मिलते। उन ग्रन्थों का नाम अन्य किया गया है। ग्रन्थों में भी पाया जाता है। इसमें अनुमान लगाया
वृहत्कल्पभाष्यपीठिका 24 वृत्ति जाता है कि कुछ असावधानी से खराब हो गये, कुछ बाहर विदेश चले गये और इसके पूर्व भारतीय दर्शन इस पुस्तक में वाद्यों के नामों का निम्न प्रकार से का अधिकांश भाग जैन, वैदिक आदि सभी दर्शनों सहित उल्लेख मिलता है:नष्ट कर दिया गया। इसलिये हमारे सामने जो वर्त
(1) भंभा (2) मुकुन्द (3) मद्दल (4) कडंब मान में ग्रन्थ आगम आदि हैं उन्हीं के आधार पर कुछ
(5) झल्लरि (6) हुडुक्क (7) कांस्यताल (8) काहल दिग्दर्शन कराया जा सकता है। वर्तमान अनुसंधानकर्ता
(9) तलिमा (10) वंश (11) पणव तथा (रिसर्च करने वाले) वर्तमान ग्रन्थों के आधार पर ही अंतिम छाप लगा बैठते हैं । पर यह विचारणीय है कि
(12) शंख । अंतिम छाप तो वह लगा सकता है जो सर्वज्ञ और स्थानाड ग7,उ.3 एवं अनुयोग द्वार अंतरयामी हो। छद्मस्थ यदि ऐसा करता है तो यह उसकी अनाधिकार चेष्टा है।
उपरोक्त ग्रन्थों में "संगीत" की व्याख्या विशद रूप
से की गयी है। इसमें गीत के तीन प्रकार बताये गये वाद्यों से संबंधित ग्रंथ
स्थानाग 4
(1) प्रारम्भ में मृदु (2) मध्य में ते (3) अन्त प्रस्तुत ग्रन्थ में वाद्यों के चारों प्रकारों के वर्गी- में मन्द । करण का उल्लेख है । जैसे :
गीत के दोष (1) तत् --तंतुवाद्य, वीणा आदि,
(1) भीतं-भयभीत मानस से गया जाय, (2) तितत-मंढे हुये वाद्य, पटह आदि,
(2) द्रुतं-बहुत शीघ्र शीघ्र गाया जाय, (3) घन-कांस्यताल
(3) अपित्वं-श्वास युक्त शीघ्र गाया जाय अथवा
हस्व स्वर लघु स्वर से ही गाया जाय । (4) झुशिर-शुषिर-फूक द्वारा बजने वाले वाद्य, बांसुरी आदि।
(4) उत्तालं-अति उत्ताल स्वर से व अवस्थान
ताल से गाया जाय। राजप्रश्नीय सूत्र 64
(5) काकस्वरं-कौए की तरह कर्ण-कटु शब्दों प्रस्तुत ग्रन्थ में (1) शंख, (2) शृग, (3) से गाया जाय ।
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