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केवल मानव-जगत में चितन के नये आयाम स्थापित किये, प्रत्येक व्यक्ति अपने पास आवश्यक सम्पत्ति या परिग्रह वरन् ऐसे मानवतावादी दर्शन को जन्म दिया जिससे रखने का परिमाण करे और शेष सम्पत्ति दूसरों के हित आनेवाली सभ्यता भी हजारों-हजारों वर्षों तक प्रेरणा में दे डाले। आवश्यकता और परिमाण से अधिक तथा दिग्दर्शन प्राप्त कर सके।
सम्पत्ति रखने को उन्होंने पाप निरूपित किया ।
मानव जाति के इन महापुरुषों में से एक जिस प्रकार बीज की निष्पत्ति 'पेड़ है, और पेड़ "महावीर", वैशाली के राजकुमार वर्द्धमान के रूप में की निष्पत्ति फल उसी प्रकार दर्शन की निष्पत्ति एक सम्पन्न राज परिवार में जन्मे । वे भौतिक ऐश्वर्य धर्म है और धर्म की निष्पत्ति मैतिकता पूर्ण की चरम सीमा को स्पर्श कर, उसके उपभोग में भी व्यवहार; इसी को बाहर से देखने पर नैतिकएक गम्भीर रिक्तता का अनुभव कर, उनसे मुक्त हो व्यवहार से धर्म और धर्म से दर्शन की निष्पत्ति प्रतीत क्रान्तिपुरुष के रूप में उभरे और धार्मिक जड़ता, अन्ध- होती है । इस परिप्रेक्ष्य में तीर्थ कर महावीर का दर्शन श्रद्धा, जाति एवं वर्गभेद तथा सामाजिक वैषम्य की अन्तर से बाहर की ओर अग्रसर होता है। उन्होंने सीमाओं को तोड़कर आत्म-विजेता बने। उन्होंने अपने सम्यक धर्म, दर्शन एवं चरित्र पर बल दिया। जिसका युग में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, बौद्धिक, एवं दृष्टिकोण सम्यक है, वह व्रती होगा। ऐसा व्रती अहिंसक आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में नव-क्रान्ति का सूत्रपात रहेगा और अपने आश्रितों एवं कर्मकारों के प्रति सदकिया। वे सांसारिक युद्धों से विमुक्त रहकर, आत्मिक व्यवहार करेगा तथा उनकी आजीविका अर्जन में विघ्न संग्राम में विजयी हो 'जिन' अर्थात् विजेता कहलाए। नहीं डालेगा । वह सत्य व्रत का पालन करेगा और
विश्वासघात नहीं करेगा, छलपूर्ण व्यवहार, विलासिता, यही नहीं उन्होंने अपने व्यापक एवं सर्वाङ्गीण पूर्ण सामग्री से विमुक्त रहकर जीवन की मूलभूत दर्शन द्वारा भावी चिन्तन का मार्ग प्रशस्त कर सकने आवश्यकताओं की पूर्ति योग्य ही संग्रह कर नैतिकतायोग्य मौलिक एवं सुदृढ़ आधारों की स्थापना की। पूर्ण जीवन व्यतीत करेगा। उन्होंने जाति, वर्ण एवं यदि हम आज बीसवीं सदी में मानव चिन्तन को प्रभा- वर्गभेद का तीव्र विरोधकर उसे ईश्वर प्रदत्त व्यवस्था वित करनेवाली प्रमुखतम विचारधाराओं, समाजवाद कहनेवाली धारणाओं का खण्डन किया तथा इसे मनुष्यऔर गाँधीवाद के मूल में झांकें तो पाएंगे कि जिन जन्य काल्पनिक एवं भेदपूर्ण व्यवस्था कहा । यही नहीं, आधारों पर इन दो प्रमुख विचारधाराओं का विकास वरन उन्होंने तत्कालीन समाज में पूर्व प्रचलित सामाजिक हुआ, उनकी परिकल्पना तीर्थकर महावीर ने आज से दुर्व्यवस्थाओं के विरुद्ध जन-जागरण किया। ढाई हजार वर्ष पूर्व ही की थी।
इस प्रकार तीर्थ कर महावीर का दर्शन अहिंसक बीसवीं सदी के क्रान्तिकारी विचारक तथा वर्तमान परिवेश में समाजवादी व्यवस्था के उन सभी मूलाधारों समाजवादी विचारधारा के प्रेरक तथा उन्नायक कार्ल को सँजोये हुए है, जिन पर आज का समाजवादी दर्शन मार्क्स के दर्शन के मूलाधार वर्गसंघर्ष, तथा द्वन्द्वात्मक टिका है। मार्स ने जो बाद में कहा, उसे उन्होंने बहुत भौतिकवाद की परिकल्पना तीर्थकर महावीर के जीवन- पहले देखा । उन्होंने अपरिग्रहवाद की स्थापना कर दर्शन में स्पष्टतः परिलक्षित होती है। उन्होंने संग्रह वृत्ति श्रावक के परिग्रह की मर्यादा निश्चित की तथा अपरिका विरोधकर आवश्यकतानुसार संग्रह पर बल दिया ग्रह के रूप में किसी भी वस्तु के प्रति ममत्व को भी और अपरिग्रह दर्शन की स्थापना की। उन्होंने कहा कि त्यागने तथा श्वानुशासन का पालन कर मर्यादा के
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