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गणधर का काल माना है । और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी क्रमशः सुधर्मा और जम्बूस्वामी को रखा है पर स्थविरावली में गौतम के स्थान पर सुधर्मा का काल 20 वर्ष ( 12820) रखा है जबकि कल्पसूत्र पूर्ववर्ती परम्परा को ही स्वीकार कर महावीर निर्वाण के बाद 12 वर्ष गौतम का और 8 वर्ष सुधर्मा का काल निर्धारण करता है । यह कालगणना जो जैसी भी हो, पर दोनों परम्पराएं भद्रबाहु के कुशल नेतृत्व को सहर्ष स्वीकार करती हुई दिखाई देती हैं। अन्तर यहाँ यह है कि दिगम्बर परम्परा महावीर निर्वाण के 162 वर्ष बाद भद्रबाहु का निर्वाण समय मानती है जबकि श्वेताम्बर परम्परा 170 वर्ष बाद यहाँ लगभग आठ वर्ष का कोई विशेष अन्तर नहीं पर समस्या यह है कि इस कालगणना से भद्रबाहु और
1. गौतम
2. सुप 3. जम्बू
4.
प्रभव
5. स्वयंभू
6. यशोभद्र
आचार्य कालगणना
7. संभूतिविजय 8. भद्रबाहु
9. स्थूलभद्र
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- 12 वर्ष 8 वर्ष
- 44 वर्ष
- 11 वर्ष
- 23 वर्ष
-50 वर्ष
8 वर्ष -14 वर्ष
- 45 वर्ष
-
215 वर्ष
चन्द्रगुप्त मौर्य की समयकालीनता सिद्ध नहीं होती । उन दोनों महापुरुषों के बीच वही प्रसिद्ध 60 वर्ष का अन्तर पड़ता है । अर्थात् यदि भद्रबाहु के समय वीर नि. 162 में 60 वर्ष बढ़ा दिये जायें तो चन्द्रगुप्त मौर्य और भद्रबाहु की समय कालीनता ठीक बन जाती है अथवा चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में से 60 वर्ष पीछे हटा दिये जायें जैसा कि हेमचन्द्राचार्य ने महावीर निर्वाण से 215 वर्ष की परम्परा के स्थान में 155 वर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्त का राजा होना लिखा है तो दोतों की समयकालीनता बन सकती है ।"
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4. जैन साहित्य का इतिहास पूर्व पीठिका, पृ० 342. 5. पट्टावली समुच्चय, पृ० 17.
श्वेताम्बर पपम्परानुसार महावीर निर्वाण के उपरान्त जैन संघ परम्परा इस प्रकार दी जाती है
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पालक
नवनन्द
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राजकाल
-- 60 वर्ष
- 155 वर्ष
-215 वर्ष
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