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व्याख्यानों से भी यही अवगत होता है । आशय यह कि निश्चय के आधार पर ही होता है। जब तक साधन आप्तमीमांसा के इस सन्दर्भ से इतना ही ज्ञात होता के साध्याविनाभाव का निश्चय न होगा तब तक उससे है कि समन्तभद्र को अन्यथानुपपन्नत्वविशिष्ट विलक्षण साध्य का निर्णय नहीं हो सकता। हेतु से होनेवाला साध्यज्ञान अनुमान इष्ट रहा है।
यहाँ प्रश्न है15 कि इस अनुमान-परिभाषा से ऐसा सिद्ध सेन ने स्पष्ट शब्दों में अनुमान लक्षण
प्रतीत होता है कि जैन परम्परा में साधन को ही अनुदिया है
मान में कारण माना गया है, साधन के ज्ञान को नहीं?
इसका समाधान यह है कि16 उक्त 'साधन' पद से 'निश्चयसाध्याविनाभुनो लिंगात् साध्यनिश्चद्दायकं स्मृतम्।
पथ प्राप्त साधन' अर्थ विवक्षित है, क्योंकि जिस धूमादि अनुमान तदभ्रान्तं प्रमाणत्वात् समक्षवत् ।।
___ साधन का साध्याविनामावित्वरूप से निश्चय नहीं है
वह साधन नहीं कहलाता । अन्यथा अज्ञायमान धूमादि साध्य के बिना न होनेवाले लिंग मे जो माध्य का लिंग से सुप्त तथा अगृहीत धूमादि लिंगवालों को भी निश्चायक ज्ञान होता है वह अनुमान है। इस अनमान बह्नि आदि का ज्ञान हो जाएगा । अतः 'साधन' पद से लक्षण में समन्तभद्र का हेतुलक्षणगत 'अविरोधतः' पद, 'अविनाभावरूप से निर्णीत साधन' अर्थ अभिप्रेत है, जो अन्यथानुपपत्ति-अविनाभाव का बोधक है, बीज रूप केवल साधन नहीं। न्यायविनिश्चय के विवरणकार में रहा हो, तो आश्चर्य नहीं है। .
आचार्य वादिराज ने भी उसका यही विवरण किया
है । यथाअकलंक ने न्यायविनिश्चय और लधीयस्त्रय दोनों
'साधनं साध्याविनाभावनियमनिर्णयकलक्षणं में अनुमान की परिभाषा अंकित की है। न्यायविनिश्चय की अनुमान-परिभाषा निम्न प्रकार है--
वक्ष्यमाणं लिंगम् ।
साधन वह है जिसके साध्याविनाभावरूप नियम साधनात्साध्य विज्ञान मनुमानं तदत्यये ।।
का निश्चय है । इसी को लिंग (लीनमप्रत्यक्षमर्थ गमसाधन (हेतु) से जो साध्य (अनुमेय) का विशिष्ट यति)--छिपे हए अप्रत्यक्ष अर्थ का अवगम कराने वाला (नियत) ज्ञान होता है वह अनुमान है ।
भी कहा है।
अकलंकदेव स्वयं उक्त अर्थ की प्रकाशिका एक अकलंक का यह अनुमान-लक्षण अत्यन्त सरल और
दूसरी अनुमान-परिभाषा लघीयस्त्रय में निम्न प्रकार सुगम है। परवर्ती विद्यानन्द, माणिक्यनन्दि, वादिराज, प्रभाचन्द्र. हेमचन्द्र, धर्मभषण प्रभति ताकिकों ने इसी को
करते हैंअपनाया है। स्मरणीय है कि जो साधन से साध्य का लिंगात्साध्याविनाभावाभिनिबोधकलक्षणात् । नियत ज्ञान होता है वह साधनगत अविनाभाव के लिंगिधीरनुमान तत्फलं दानादिबुद्धयः ।।
13. न्यायावतार का. ५; 14. न्यायविनिश्चय. द्वि. भा. २१२; 15. 'ननु भवतांमते साधनमेवानुमाने हेतुर्नतु साधन ज्ञानं साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानमिति ।'-धर्म भूषण न्या. दी. पृ. ६७; 16. 'न, 'साधनात्' इत्य निश्चयपथ प्राप्ताद्धमादेरिति विवक्षणात्'। वही, पृ. ६७; 17. वादिराज, न्या. वि. वि. द्वि. भा. २११, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली; 18. अकलंकदेव लधीयस्त्रय का. १२ ।
न साधनात
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