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________________ १५२ परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥ २१ ॥ वेतना परिणामः क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य ॥ २२॥ स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ॥ २३ ॥ शब्दबन्धसोक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानमेदतमश्छाया तपोयोतवन्तश्च ॥ २४ ॥ अणवः स्कन्धाश्च ॥ २५ ॥ संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ॥ २६ ॥ मेदादणुः ॥ २७ ॥ भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषाः ॥ २८ ॥ उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ॥ २९ ॥ तद्भावाव्ययं नित्यम् ॥ ३० ॥ १ वर्तनापरिणामक्रिया: पर० स० । वर्तनापरिणामक्रिया पर०. रा० । ये संपादकों की भ्रान्तिजन्य पाठान्तर मालूम होते हैं । क्योंकि दोनों टीकाकारो ने इस सूत्र में समस्त पद होने की कोई , सूचना नहीं की। २ भेदसंघातम्य उ० -स. रा. लो० । ३ -चाक्षुषः -स. रा. लो. । सिद्धसेन इस सूत्र के अर्थ करने में किसी का मतमेद दिखाते हैं । ४ इस सूत्र से पहिले स० और लो० में 'सद् द्रव्यलक्षणम्' ऐसा सूत्र है । लेकिन रा० में ऐसा अलग सूत्र नहीं । उसमें तो यह बात उत्थान में ही कही गई है।
SR No.011620
Book TitleTattvarthadhigam Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1940
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size14 MB
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