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पंचमप्रकाश.
४०ए नो क्षय थाय, तथा पांच अंगपर शीतलता थाय, तो दश दिवसमां मृत्यु थाय. तथा
अर्घोषणमथ शीतं च, शरीरं जायते यदा ॥ ज्वालाकस्माज्ज्वलेडांगे, सप्तादेन तदा मृतिः॥ १५ ॥ अर्थः- जो शरीर अरg उष्ण अने अरधुं शीतल थाय, तथा शरीरमां अकस्मात् ज्वाला निकले, तो सात दिवसें मृत्यु थाय. तथा,
स्नातमात्रस्य हृत्पादं, तत्तणायदि शुष्यति ॥
दिवसे जायते षष्ठे, तदा मृत्युरसंशयं ॥ १५॥ अर्थः- स्नान कर्या पड़ी तुरतज जो हृदय अने पग सुका जाय, तो संशयविना बके दिवसे मृत्यु थाय. तथा,
जायते दंतघर्षश्चे, बबगंधश्च उःसदः॥ विकृता नवति बाया, त्र्यदेन घियते तदा ॥२५॥ अर्थः- दांतनो घसारो थाय, तथा सहन न थ शके एवी मुडदा सरखी गंध थाय, तथा बायामां विकृति थाय, तो त्रण दिवसें मृत्यु थाय.
न स्वनाशां स्वजिह्वां न, न ग्रहान्नामला दिशः॥
नापि सप्त ऋषीन व्योनि, पश्यति घियते तदा ॥१६॥ अर्थः- पोतानी नासिका, जीन, ग्रहो, निर्मल दिशार्ज, तथा थाकाशमां सप्त शषिउने पण जो न जोश् शके, तो ते मृत्यु पामे. तथा,
प्रनाते यदि वा सायं, ज्योत्स्नावत्यामथो निशि ॥ प्रवितत्य निजौ बाढू, निजबायां विलोक्य च ॥ १६१॥ शनैरुक्षिप्य नेत्रे स्व, बायां पश्येत्ततोऽबरे॥
न शिरोदृश्यते तस्यां, यदा स्यान्मरणं तदा ॥१६॥ अर्थः- प्रजातमां अथवा सायंकाले, अथवा अजवाली रात्रि, पोताना बन्ने हाथो विस्तारिने, गयाने जोवी; तथा पड़ी धीरेयी पोतानी आंखो उघाडीने आकाशमां बाया जोवी; तेमां जो मस्तक न देखायतो मृत्यु थाय. तथा,