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पंचमप्रकाश..
४०० अर्थः-श्रांखनी कीकीने काला रंगवाली जुवे, अने होठ तथा तालु जो (अकस्मात्) सुकाश् जाय, तथा राजदंतनी अंदर पोतानी त्रण थांगुली न देखाय, श्रने गीध, कागडो, कपोत, क्रव्याद, (मांस नदी पक्षी) अथवा बीजो कोश्पक्षी मस्तकमां संताश् जाय तो मासें मृत्यु थाय.तथा,
स्वप्ने मुंडितमन्यक्तं, रक्तगंधस्त्रगंबरं॥
पश्येद्याम्यां खरे यांतं, स्वं योऽब्दार्ध सजीवति ॥ १४५॥ अर्थः-खप्नमां, पोताने मुंडित, मर्दन करेलो, लाल चंदन अने फुलनी माला वालो, तथा रात्रि गधेडापर स्वार अश्ने जतो जो जुवे, तो ते अरधा वरससुधि जीवे. तथा,
घंटानादो रतांते चे, दकस्मादनुनूयते॥
पंचता पंचमास्यंते, तदा नवति निश्चितं ॥१४६॥ श्रर्थः- संजोगने अंते अकस्मात् जो घटानो नाद अनुनवे, तो खरेखर पांच मासें मृत्यु थाय. तथा,
वक्रीनवति नासाचे, वर्तुली नवतो दृशौ ॥ स्वस्थानाद् भ्रश्यतः कर्णी, चतुर्मास्यास्तदा मृतिः॥१४॥ अर्थः- जो नासिका वांकी थाय, शांखो गोल थाय, तथा कर्णो तेना स्थानकथी खसी जाय, तो चारमासे मृत्यु थाय. तथा,
कृष्णं कृष्णपरीवारं, लोहदंडधरं नरं॥
यदा स्वप्ने निरीदेत, मृत्युर्मासैस्त्रिनिस्तदा ॥ १४ ॥ अर्थः- जो स्वप्नमां श्याम रंगवाला, श्यामरंगनां परिवारवाला, लो. खंडना दंडने धारण करनारा एवा माणसने जो जुवे, तो त्रण मासें . मृत्यु थाय, तथा,
इंदुमुष्णं रविं शीतं, बिनूमौ रवावपि ॥ जिहां श्यामां मुखं कोक, नदानं च यदेदते ॥१४॥ तालुकंपोमनःशोको, वर्णोडगे नैकधा यदा ॥
नानेश्चाकस्मिकी दिका, मृत्युर्मासद्वयात्तदा ॥ २५० ॥ अर्थः- चंजने उष्ण, सूर्यने वंडो, नूमि अने सूर्यमां निस, जीनने