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योगशास्त्र. नो अपराध स्मरण थयाथी, गुरुने चरणे पडीने कद्देवा लाग्या के, हे ज. गवन् , ! फरीने एवो अपराध हुं करीश नहीं, माटे आटलो अपराध श्राप क्षमा करो? त्यारे श्राचार्य महाराज कडं के, तुं फरीने तो अपराध नहीं करे ते ठीक, पण जे था तें अपराध कर्यो, तेथी तने वाचना था. पीश नहीं. पली सघला संघे एका थश्ने, स्थूलजअजीने गुरुने चरणे नमावीने, तेमनी क्षमा फरीने मगावीने, शांत कर्याः केम के मोटाने प्रसादयुक्त करवामां मोटाज समर्थ होय . पली श्राचार्य महाराज संघने कह्यु के, जेवं कार्य था स्थूलनमजीए कर्यु, तेज कार्य हवे पीना मंदसत्व प्राणी पण करशे. माटे हवे बाकी रहेला पूर्वनां पर्वो मारी पासेज रहो? बीजाउने शिक्षामाटे श्रामने था दोषनो दंड नसे रह्यो. प. बी संघे श्राग्रहयुक्त कह्याथी, आचार्य महाराजें उपयोगधी जाण्यं के, पू. वोनो उछेद माराथी यवानो नथी; एम विचारि तेमणे स्थूखजनजीने कडं के, हवे तमारे बीजा कोश्ने था जणाववां नहीं, एम कही तेमने वाचना आपी. पठी एवी रीतें स्थूलनन महामुनि सर्वपूर्वधर थया, तथा अनुक्रमें श्राचार्यपदवी मेलवीने नजविकोने बोध करवा लाग्या. एवी रीतें स्थूलना महामुनि, स्त्रीउथी विरक्त थश्ने, तथा समतामां रहीने, अनुक्रमें देवलोके गया; एवी रीतें बुद्धिमान् माणसें संसारसुखथी विरक्त थवानो विचार करवो.
एवी रीतें श्री स्थूलनड महामुनीश्वरनुं चरित्र जाणवू.
हवे स्त्रीना अंगनुं खरूप कलापकें करीने कहे . यकृबकृन्मलश्लेष्म, मजास्थिपरिपूरिताः॥
स्नायुस्यूताबदीरम्याः, स्त्रियश्चर्मप्रसेविकाः॥२३॥ अर्थः- हमेशां विष्टा, मेल श्लेष्म, मजा, हाडकां विगेरेथी जरेसी, तथा स्नायुथी सीवेली, तथा तेथी, बहारथी रमणीय लागती, एवी स्त्री चांमडांनी बनावेली धमणसरखी बे.
बहिरंतर्विपर्यासः, स्त्रीशरीरस्य चेद्नवेत् ॥
तस्यैव कामुकः कुर्याद्, गृघ्रगोमायुगोपनं ॥ १३३ ॥ अर्थः- माटे स्त्रीनां शरीरनो जो बहार अने अंदरना नागमां विप