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तृतीयप्रकाश.
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देनार एसला हिंसको बे, केम के मनु (मनुस्मृतिना करनार ) प -
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अनुमंता विशसिता, निरंता क्रयविक्रयी ॥ संस्कर्त्ता चोपहर्त्ता च खादकश्चेति घातकाः ॥ २१ ॥
अर्थ :- हिंसानी अथवा मांसनी अनुमोदना करनार, होला प्राणीना अंगना जागो करनार, हणनार, मांसनो वेपार करनार, मांसने पकावनार, मांसने पीरसनार, तथा खानार ए सघलार्डने हिंसक जाणवा. वली बीजो पण मुनुए कहेलो लोक कड़े बे. नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां, मांसमुत्पद्यते क्वचित् ॥ न च प्राणिवधः स्वर्ग्य, स्तस्मान्मांसं विवर्जयेत् ॥ २२ ॥ अर्थ:- प्राणिनी हिंसा कर्याविना मांस, कोइ पण रीतें मली शकर्तुं नथी, ने प्रणिनी जे हिंसा. ते स्वर्ग पनारी नथी, माटे मांसनो त्याग करवो.
हवे अन्यना परिहारें करीने मांसमक्षकनेज हिंसक पशुं देखाडता थका कड़े बे.
ये जयंत्यन्यपलं, स्वकीयपलपुष्टये ॥
त एव घातका यन्न, वधको नदकं विना ॥ २३ ॥
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अर्थः- जे माणसो, पोतानां मांसनी पुष्टि माटे, परनां मांसनुं जकरे बे, ते माणसोज खरेखरा तो हिंसको बे, कारण के, मांस खानारविना वध करनार तो होयज क्यांथी ? वली सिद्धांतमां पण कनुंबे के, दंतू परपाणे, अप्पाणं जे कुांति सप्पाणं ॥ अप्पा दिवसाएं, करण नासंति अप्पाणं ॥ १ ॥ दवे तेज शरीरनी जुगुप्सा देखाडे बे. मिष्टान्नान्यपि विष्टासा, दमृतान्यपि मूत्रसात् ॥ स्युर्यस्मिन्नंगकस्यास्य कृते कः पापमाचरेत् ॥ २४ ॥ अर्थः- जे शरीरनी अंदर, मिष्ट मिष्ट एवां अन्न आदिक पण विष्टा