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________________ ६०२ आचाराङ्गसूत्रे बादरा वनस्पतयः संक्षेपतः पड्विधाः-अग्रवीज-मूलबीज-पर्वबीज-स्कन्धबीज-वीजरुह-संमूच्छिमभेदात् । अग्रे बीजं येषां ते-अग्रवीजाः कोरण्टकमभूतयः । मूलमेव बीजं येषां ते मूलवीजाः कदल्यादयः । पर्वणि ग्रन्थौ सन्धिमागे पर्व वा बीजं येषां ते पर्ववीजाः इक्षु-वंश-वेत्रप्रभृतयः। स्कन्धः स्थुडं, स एव वीजं येपां ते स्कन्धवीजा: अरणि-शल्लकी-स्नुहीप्रभृतयः । वीजाद् रोहन्ति प्रादुर्भवन्तीति वीजरुहाः शालि-गोधूम-जव-मक्का-वर्जरीप्रभृतयः । संमूर्च्छन्ति बीज विनाऽपि दग्धभूमावपि समुद्भवन्तीति संमूच्छिमाः पृथिवीजलसंयोगमात्रजनितास्तृणविशेपाः । बादर वनस्पति संक्षेप में छह प्रकार की है-(१) अग्रबीज (२) मूलवीज (३) पर्वबीज (४) स्कन्धबीज (५) बीजरुह और (६) संमूर्छिम | जिन वनस्पतियोंका बीज आगे रहता है ऐसी कोरण्टक आदि वनस्पतिया अग्रबीज कहलाती है । पर्व (पोर-संधिभाग) में जिनका बीज हो, या पर्व ही जिनका बीज हो उन्हें पर्ववीज कहते है, जैसे-ईख, बास, बेंत आदि। स्कंध जिनका बीज हो ऐसी अरणि, शल्लकी, स्नुही (थुहर) वगैरह स्कन्धबीज कहलाती है । शाली, गेहूँ, जौ, मक्की, बाजरी वगैरह बीज से उगने वाली वनस्पति को बीजरुह कहते हैं । बीज के विना भी, जली हुई जमीन आदि में भी पृथ्वी और जल के संयोगमात्र से उत्पन्न होने वाली वनस्पति संमूर्छिम कहलाती है। मा६२ वनस्पति सपमा छ प्रा२नी छ- (१) मअमीर, (२) भूमी, (3) udular, (४) २४-८५ilor, (५) मा०४२७, (६) सभूभि. २ वनस्पतिमार्नु બીજ આગળ રહે છે એવી કેટક આદિ વનસ્પતિઓ અબીજ કહેવાય છે. મૂળ એજ જેનું બીજ હોય એવી કદળી આદિ વનસ્પતિઓ મૂળબીજ છે-પર-સંધિભાગ)માં જેનું બીજ હોય તેને પર્વબીજ કહે છે, જેમકે -શેલડી, વસ, નેતર આદિ. સ્કંધ જેનું બીજ હોય તે અરણ શલ્ય, સ્નેહી (ર) વગેરે સ્કંધબીજ કહેવાય છે. શાલી, ઘઉં, જવ, મકાઈ, બાજરી વગેરે બીજથી ઉગવા વાળી વનસ્પતિને બીજરૂહ કહે છે. બીજ વિના પણ બળી ગએલી જમીન આદિમાં પણ પૃથ્વી અને જલન સંગમાત્રથી ઉત્પન્ન થવા વાળી વનસપતિ તે સંમૂઈિમ કહેવાય છે.
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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