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________________ કૃષ્ણ उत्तरप्रकृतिसंख्या आचाराङ्गसूत्र ज्ञानावरणीयाद्यष्टविधकर्मणामुत्तरप्रकृतिसंख्या अष्टचत्वारिंशदधिकशतं १४८ भवन्ति । तथाहि (१) ज्ञानावरणीयस्य-मति - श्रुता - ऽवधि - मन:पर्यय केवलज्ञानावरणीयंभेदात् पश्च । (२) दर्शनावरणीयस्य - चक्षुर्दर्शना - ऽचक्षुर्दर्शना - ऽवधिदर्शन - केवलदर्शनावर - णीयानि चत्वारि, तथा - निन्द्रा - निद्रानिद्रा - प्रचला - प्रचलाप्रचला - स्त्यानर्द्धिभेदात् पञ्च मिलित्वा नव भवन्ति । (३) वेदनीयस्य शाताशातभेदेन द्वौ भेदौ स्तः । 1 उत्तरप्रकृतियोंकी संख्या ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियों की संख्याएँ ( मध्यमविवक्षा से ) १४८ है । वे इस प्रकार (१) ज्ञानावरणीय की पांच - (१) मतिज्ञानावरणीय, (२) श्रतज्ञानावरणीय, (३) अवधिज्ञानावरणीय, (४) मन:पर्ययज्ञानावरणीय, (५) केवलज्ञानावरणीय । (२) दर्शनावरणीय की नौ - (१) चक्षुर्दर्शनावरणीय, (२) अचक्षुर्दर्शनावरणीयं, (३) अवधिदर्शनावरणीय, (४) केवलदर्शनावरणीय, तथा (५) निद्रा, (६) निद्रानिर्द्रा, (७) प्रचला, (८) प्रचलाप्रचला, (९) स्त्यानर्द्वि, ये पांच निद्राएँ मिलकर कुल नौ प्रकृतियाँ है । (३) वेदनीय की दो - सातावेदनीय और असातावेदनीय । ઉત્તરપ્રકૃતિની સખ્યા— જ્ઞાનાવરણીય આદિ આઠ કર્મોની ઉત્તરપ્રકૃતિએની સંખ્યા (મધ્યમ વિવક્ષાથી) मेभोने अडतासीस (१४८) छे. ते या प्रभा (१) ज्ञानावरणीयनी पांथ - ( १ ) भतिज्ञानावरणीय, (२) श्रुतज्ञानावरथीय, પાંચ (3) अवधिज्ञानावरणीय, (४) मन:पर्ययज्ञानावरणीय, (4) ठेवलज्ञानावरणीय. (२) हर्शनावरणीयनी नव छे. (१) यक्षुर्हर्शनावरणीय, (२) अयक्षुर्द्धर्शनावरणीय, (3) अवधिदर्शनावरीय, (४) ठेवतहर्शनावरणीय, तथा (५) निद्रा, (६) निद्रा-निद्रा (७) असा, (८) प्रयसा-प्रथमा, (स) स्त्यानद्धि, या पांच निद्रा भजीने નવ પ્રકૃતિએ થાય છે. (3) पेहनीयनी मे (१) सातावेदनीय भने असातावेदनीय.
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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