________________
(श्री दशवैकालिकसूत्रका सम्मतिपत्र) ॥श्री वीरगौतमाय नमः॥
सम्मतिपत्रम् मए पंडितमुणि-हेमचंदेण य पंडिय-मूलचन्दवासवारा पत्ता पंडिय-रयण-मुणि-घासीलालेण विरहया सक्कय-हिन्दी-भाषाहिं जुत्ता सिरि-दसवेयालिय-नामसुत्तस्स आयारमणिमंजूसा वित्ती अवलोइया, इमा मणोहरा अस्थि, एत्थ सदाणं अइसयजुत्तो अत्थो वण्णिओ, विउजणाणं पाययजणाण य परमोवयारिया इमा वित्ती दीसइ। आयारविसए वित्तीकत्तारेण अइसयपुव्वं उल्लेहो कडो, तहा अहिंसाए सख्वं जे जहा-तहा न जाणंति तेसिं इमाए वित्तीए परमलाहो भविस्सइ, कत्तुणा पत्तेयविसयाणं फुडस्वेण वण्णणं कडं, तहा मुणिणो अरहत्ता इमाए वित्तीए अवलोयगाओ अइसयजुत्ता सिज्झइ। सक्कयछाया सुत्तपयाणं पयच्छेओ य सुबोहदायगो अत्थि, पत्तेयजिण्णासुणो इमा वित्ती दुव्वा। अम्हाणं समाजे एरिसविज्ज-मुणिरयणाणं सम्भावो समाजस्स अहोभग्गं अत्थि, किं उत्तविज्जमुणिरयणाणं कारणाओ, जो अम्हाणं समाजो सुत्तप्पाओ अम्हकेरं साहिच्चं च लुत्तप्पायं अस्थि, तेसिं पुणोवि उदओ भविस्सइ ? जस्स कारणाओ भवियप्पा मोक्खस्स जोग्गो भवित्ता पुणो निव्वाणं पाविहिड्। अओहं आयारमणिमंजूसाए कत्तुणो पुणो पुणो धन्नवायं देमि-।। वि. सं. १९९० फाल्गुन ) इइ
शुक्लत्रयोदशी महाले । उवज्जाय जइण-मुणी, आयारामो (अलवरस्टेट)
(पंचनईओ) ऐसे ही:
मध्यभारत सैलाना-निवासी श्रीमान् रतनलालजी डोसी श्रमणोपासक जैन लिखते हैं कि
श्रीमान् की की हुई टीकावाला उपासकदशांग सेवक के दृष्टिगत हुवा, सेवक अभी उसका मनन कर रहा है, यह ग्रन्थ सर्वाङ्गसुन्दर एवम् उच्च कोटि का उपकारक है।