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________________ ૩૧૮ .. परिशिष्ट (७) श्रीमहावीर जिणंदनऊ, पहिलउ गणधार । मनमोहन महिमानिलऊ, मोटउ' अणगार, श्रीगौतम० ॥३॥ श्रीवसुभूति पुन वडऊ जती, पृथिवी मात मल्हार । गुणमणि रोहणगिरि समउ, सविजन सुखकार, श्रीगौतम०॥४॥ गौतम नामइ पामीयइ, सुख सुजस संतान । आधि व्याधि दूरइ टलइ, वाधइ वसुधा वान, श्रीगौतम० ॥५॥ गुरु नामइ गहगट हवइ, भय भाजइ दूर। मनवंछित भोजन मिलइ, हुवइ सुजस पडूर, श्रीगौतम० ॥६॥ गौतम गुरुना गुण थुण्या, हूआ निरमल आज । आज जनम सफलउ थयऊ, पाम्यऊ शिवपुर राज, श्रीगौतम०॥७॥ ... सुभाषित गीत विनोद विलास रस, पंडित दीह लियंति। का निद्रा कइ कल(ह) करी, मूरख दीह गमंति ॥१॥ सालूरांनइ सरवरां, जिम धरतीनइ मेह । उत्तम जन एहवऊ करइ, निति निति वधतउ नेह ॥२॥ ५-श्रीसुरियाभ सुर नाटक विधि गीत राग प्रभाती मिन-थगना मगना थेईरे थेई । ए जाति । नयरि अनूपे आमलकप्पे, वीर वदीते तिहां पहुते । सुर सुरियाभ साहिब सेवनकू, तबही नाटक विधि रचते ॥१॥ जुग जुगते नाटक इम करते, मन सुध महावीरजीकुं वलि नमते । ए आंकणी। दोनुं भुज वीचि रचते, .... अठशत अठशत अतिरूप कुंअर कुंअरी। तिम सुर अउरातणी सो महणी, .... ...... .... सजनि रमति सुर हेज. धरी ॥ २॥ जुग० ॥ वाजिन वाजे गुणपंचासे, सुरसंचे.तिम अऊर सजे। , ...:, विकट पाट उत पाट नटावे, ताल ताल सुधताल वजे ॥३॥ जुग०॥
SR No.011554
Book TitleYuga Pradhan Jinachandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurlabhkumar Gandhi
PublisherMahavirswami Jain Derasar Paydhuni
Publication Year
Total Pages444
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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