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________________ .... परिशिष्ट (७) आंजती अंजन काइ अमरी, देव कुमरी (काय) काइ। मृगनाभि कुंकुम देवचंदण, घसीय तिलक वणाय ॥ प्रभु वदति कोमल वयण तिमतिम, मात तात सुहाय । करइ कलिसुर नर कूअरसूं वलि, अपछरसू निजिदाय ॥५॥ हिंडोलणइ० । चालीस धनुष प्रमाण अंकित, चलण सुर सारंग ॥ सारंग तनु सारंग गुरु, सम धीरिमा सारंग । सारंग वंस विलासनी वर, वण्यऊ वर सारंग। सारंग गुण सारंग वसुधा, गरजति जिम सारंग। हिंडोलणइ०। इम सकल त्रिभुवनभवनमांहि, सबल जसु सोभाग । सुर असुर नर नारि तणऊ, प्रभु ऊपरइ बहु राग। मंडलीक चक्रवर्ति तणा सुख लही, लाऊपद वीतराग । गावंति गुण 'जिणचंद' दिन दिन, इणपरि सारंग राग ॥७॥ ( हिंडोलणइ) माई झूलता संतिकुमार, मुझ मन हरख अपार । इति श्रीशांतिनाथ हिंडोलणागीतं । २ नेमिराजुल चउमासिया गीत श्रावण आज सुहामणऊ, वसुधा वरसइ मेह। चिहुं दिशि चमका दामनी, जागइ नवल सनेह । जागति नवल सनेह, सखि हे कुंअरि राजिमती कहइ । जदुराइ ! जाइ मनाय आणो, एकुण पावस दिन वहइ ॥ इण समइ सुरंगा नयर दीसइ, रएण पिण रलियामणऊ । पियु तुम्हे आवो सुख पावो श्रामण आज सुहामणउ ॥२॥ भला रे पधार्याऊ भाइवऊ, गरुऊ गुहर गंभीर। गहर घटा करि गाजीयऊ, जगिमइ जलधर धीर। जगमाहि जलधर धीर आपी, वरस वरस वली वली वेलडी। (वेलडी) रहीं लयलाय तरुसुं, मोरनसुं जिम ढेलडी। तिम रमण रमणी संग इण रितु; रंग धरइ दिन दिन नवऊ । संजोग सुंदर रति पुरंदर भला रे, पधार्यऊ भाद्रवऊ ॥२॥
SR No.011554
Book TitleYuga Pradhan Jinachandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurlabhkumar Gandhi
PublisherMahavirswami Jain Derasar Paydhuni
Publication Year
Total Pages444
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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