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.. . परिशिष्ट (७) एकतइ श्रीजी भणी, गुरु ! कहइ धरमनी वात । कुमतमति जन मनथी रहरइ, घूहडनइरे,२न सुहाइ परभात कि १२ श्रावण सुदि पडिवा दिनइ, श्रीजी यु(विन)व्या (?) सेख । साधु इसा तुम्ह को देख्या, जिण देख्या रे, २ जरामांहे रेख कि॥१३ नरपतिसुं सेखजी भणइ, सुणि साहिव ! इक वोल । बहुत बहुत दरसणि देखे, नांहि कोई रे, २ इनहीं कइ तोल कि॥१४ इम सुणी अकबर हरखीया, आवइ सुहगुरु पासि । आदरमान देई घणा, इम बोलई रे, २ मनकइ उल्लासि कि ॥१५॥ जु कछु चाहउ सु दीजीयइ, तव पभणइ गुरुराय । सब दुनियां हम तजि रहे, हम चाहूं रे,२ जीवद्याकउ उपाय कि १६ करइ बगसीस ए गुरु भणी, श्रीअकबर पतिसाहि। सात दिवस अमारिनउ, पडहउ दियउ रे, २ सवि पृथिवी मांहि कि गुरुना गुण देखी घणा, श्रीअकबर भूपाल । जुगप्रधान पदवी दीनी, जाणइ जगमई रे, २ सहु बाल गोपाल कि १८ सुहगुरुनइ उपदेशथ(की)इ, नयरि खंभाइतमांहि । जलचर जीव उगारीया, हुकुमइ करी रे, २ श्रीअकबर साहि कि १९ वधतइ वानइ दिनदिनइ, खरतर गच्छि अवतंस । तुम्हहिं बडे गुरु इणि जुगई, इम अकबर रे, २ जसु करइ प्रशंस कि मात सिरीयादे उरि धर्या, श्रीवंतसाह मल्हार। इणि जगि ए सम को नहीं, जसु नामई रे,२ हुवइ जय जयकार कि ॥ रीहड वंसइ अति भलउ, जिण सासणि सिणगार । ए गुरुना गुण अति घणा, कवियण जण रे, २ कुण पामइ पार कि ॥ जां लगि मेरु महीधर, जां सायर जां चांद । 'सुमतिकल्लोल' लेवक भणइ, तां प्रतपउ रे, २ गुरुआ जिणचंद कि ... ... ... ..इति श्रीजिन चंदसूरि-गीतं ।