________________
इसि भासिआई
थोरसामि जिणवरिंदे अमुअभूएहि अइसयगुणेहि । ते तिविहा साहाविय कम्मक्खइआ सुरकया य ॥१॥ देह विमल सुगन्ध आमयपासेहि वज्जिक्ष अरअ । रुहिर गोक्खीराम निव्विस्स पडुर मस ॥२॥
आहारा नीहारा अद्दिस्सा मस चक्खुणो सयय । नीसासो अ सुगन्धो जम्मप्पभिई गुणा एए ॥३॥ खित्ते जोयणमित्ते ज जियकोडीसहस्सओ माण । वयण धम्माबोकर ॥४॥ पुव्वष्पन्ना रोगा पसमन्ती ईश्वयरमारीओ | अइबुट्ठि - अणावृट्ठी न होइ दुव्भिक्खडमरं वा ॥५॥
सव्वसभासाणुगय
देहाणु मग्गलग्ग दीसइ भामण्डल दिणयराभं । एए कम्मक्ख इया सुरभक्तिकया इमे अन्ने ॥६॥ चक्क छत्त रयणज्झओ अ सेयवरचामरा पउमा । चउमुहपायारतिय सीहासण दुदुभि असोगो ॥७॥
कटयहिट्ठा हुत्ता ठायति अवट्टिय च नहरोम । पचेव इर्दियत्था मणोरमा हुति छप्पि रिक ||६|| गन्धोदन च वास वासं कुसुमाण पंचवण्णाण | सउणा पयाहिणगई पवणणुकूलो नमति दुमा ॥ell
भवणवइ वाणमतर जोइसवासी विमाणवासी अ । चिठ्ठन्ति समोसरणे जहण्णय कोडिमित्त तु ॥ १०॥