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नगर आगरेमें बस, कौरपाल सग्यान ।
तिस निमित्त कवि हेम कियउ कवित्त परवान ।। प्रवचनसारकी भाषा लिखानेमें भी कौरपालका सक्रिय हाथ था। हेमराजने कौरपालको अपने हितकारीके रूपमें स्मरण किया है।
बालबोध यह कीनी जैसे, सो तुम सुणउ कहूँ मैं तैसे । नगर आगरेमें हितकारी, कौरपाल ग्याता अधिकारी । तिनि विचार जियमें यह कीनी, जो भाषा यह होइ नवोनी । अलपवुधी भी अरथ वखान, अगम अगोचर पद पहिचाने । यह विचार मनमें तिनि राखी, पांड हेमराजसौं भाखी ।। आगै राजमल्लने कीनी, समयसार भापा रस लीनी ।
अब जो प्रवचनकी लै भाखा, तो जिनधर्म वदै सो साखा ।। अबतक इनकी ये रचनाएँ प्रकाशमें आ चुकी हैं
१. सितपर चौरासी बोल (पद्य), २ प्रवचनसार भाषा (गद्य) ३ गोम्मटसार कर्मकाण्ड (गद्य), ४. पंचास्तिकाय भाषा (ग), ५. परमात्मप्रकाश भापा (ग.), ६. नयचक्र भाषा (ग.), ७. द्रव्यसंग्रह भाषा (ग.), ८. गणितसार (पद्य), ९. बावनी (प.) १० भक्तामरस्तोत्र (प.), ११. साधुकी आरती (प.) १२. सुगन्धदशमी कथा (प.) १३ दोहाशतक (प.) और जीवसमास (प.)।
उक्त रचनाओंके अतिरिक्त हेमराजकी अभी एक और रचना प्राप्त हुई है और वह है समयसार वनिका । यह सम्भवतः उनकी अब तक उपलब्ध रचनाओंमें सबसे बड़ी रचना है। यह कविकी अन्तिम रचना है।
दोहाशतकके अनुसार हेमराज सांगानेरमें उत्पन्न हुये और फिर कामां जाकर रहने लगे थे। आगरे में इनका विशेष आना जाना रहता था । और यह भी संभव है कि कुछ समय पश्चात वे आगर जाकर रहने लगे हों। कविवर बुलाकीदासकी माता जैउलदे बड़ी विदुषी थीं और वह हेमराजकी पुत्री थी। बुलाकीदासके अनुसार हेमराज गगंगोत्रीय श्रावक थे ।
हेमराज पंडित बसै, तिसी आगरे ठांइ ।
गणगोत गुन आगरी सव पूजै जिस पांइ ॥ (९) बुधजन
कविवर बुधजनका पूरा नाम विरधीचन्द था। ये जयपुर (राजस्थान) के रहनेवाले थे। खण्डेलवाल जातिमें इनका जन्म हुआ था तथा बज इनका गोत्र था। इनके समयमें महापंडित टोडरमलकी अपूर्व साहित्यिक सेवाओं एवं मूल परम्परा के अनुरूप क्रांतिकारी परिवर्तनोंके कारण जयपुर भारतका साहित्यिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र बन चुका था। टोडरमलजीके प्रभावसे बुधजन अछूते न रह सके और वे उनके अवशिष्ट कार्यको आगे बढ़ाने लगे।
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