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कानजी स्वामि- अभिनन्दन ग्रंथ
SARAL CHAKAN
भ्रमर
पंकज कइ संपुटि । महि जाइ घटि ||
एक निसि भये, पडयउ मन महि मंडइ आस, रयणि खिणि करि है जलज विकास, सूर परभात उ जब । मधुकर मनि चितवइ, मुकत हो है बन्ध तब ॥ छील कर दह कहि वसइ, सर संपत्त उदैव वसि । अलि कमल युत्त पडयणि सहित तानि....सब गयो कसि ॥ (२) पांडे राजमल
पांडे राजमल अध्यात्मशास्त्र के प्रमुख प्रवक्ता थे। ये भी राजस्थानी विद्वान् थे और ढूंढाड तथा मारवाड़ में घूम घूम कर अध्यात्मका प्रचार किया करते थे। समयसार, प्रवचनसार आदि कृतियाँ उन्हें कंठस्थ थीं और वे उन्हें श्रावकों को सुनाया करते थे। विद्वत्समाजमें उनकी धाक जमी हुई थी, इसलिये जहाँ भी वे चले जाते वहीं विद्वान् एवं श्रावक गण दोनों ही इनसे नयी नयी कृतियां लिखनेकी प्रार्थना किया करते थे । कविवर बनारसीदासने अपने समयसार नाटक एवं अर्धकथानक दोनों में इनकी खूब प्रशंसा की है और उन्हें समयमार नाटक जैसे गृढ़ ग्रन्थका मरमी लिखा है
पांडे राजमल जिन धरमी, तिन गरेकी टीका कीनी,
समयसार नाटकके मरमी । बालावबोध सुगम कर दीनी ॥
राजमल्लका जन्मस्थान कौनसा था, तथा उनका साहित्यिक जीवनके अतिरिक्त अन्य जीवन कैसा रहा इसके सम्बन्ध में अभी खोज होना शेष है, लेकिन 'पाँडे' शब्दका इनके लिए जो बनारसीदासने प्रयोग किया है उससे ज्ञात होता है कि उन्होंने उदासीन जीवन अपना लिया था। और भट्टारकोंकी छत्रछाया में रहा करते थे । वे काष्ठासंघके मट्टारक हेमचन्द्रकी आम्नायके विद्वान् थे ।
राजमल्ल बहुत विद्वान् थे। प्राकृत, हिन्दी और संस्कृत पर उनका समान अधिकार था। वे संस्कृत में एवं हिन्दी में समान रूपसे रचना कर सकते थे। प्राकृत ग्रन्थोंके वे अपने समयके अधिकारी विद्वान् माने जाते थे । समयसार कलशकी उन्होंने जो टीका की है वह पूर्णतः विषयको स्पर्श करनेवाली होकर भी सुगम एवं राजमलकी अवतक जो कृतियां उपलब्ध हुई हैं वे ये हैं
हिन्दी बालावबोध मनोहर है । पाण्डे
(१) जम्बूस्वामीचरित्र (२) लाटीसंहिता (३) अध्यात्मकमलमार्त्तण्ड (४) छन्दोविद्या, (५) पञ्चाध्यायी ( ६ ) तत्त्वार्थसूत्र वचनिका ( ७ ) समयसार कलश वचनिका ।
उक्त सात रचनाओंके अतिरिक्त अभी और भी रचनाऐं विद्वानोंकी खोजकी बाट जो
रही हैं।