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अध्ययम अगीयार,.
[२३७] पुरा हत्थेणं पच्छा पाएणं ततो संजयामेव णिक्खमेज वा पविसेज्ज वा। (६८१)
से आगंतारेसु वा अणुबीइ उवस्सयं जाएज्जा । जे तत्य ईसरे जे तत्थ समाहिए, ते उबस्सयं अणुण्णवेज्जा:-" कामं १ खलु आउसो, अहालंदं अहापरिण्णातं वसिस्सामो, जाव' आउसंतो, जाव आउसंतरस उवस्सए, जार साहम्मियाए, तावता उबस्सयं गिहिस्सामो. तेण परं विहरिस्सानो । (६८२)
से सिक्न वा भिक्षुणी वा अस्सुवस्सए संवसेज्जा तस्स णामगोयं पयामेव जाणेज्जा । तओ पच्छा तम्स गिहे णिमंतेमाणस्स अणिमंते
१ तवेच्छया २ अन्न यावच्छब्दो नातिदेशे किंतु परिमाणार्थे तावता संवद्धश्वास्ति.
खोइ घेश तथा तेय पना जीवजंतुनी पण विराधना धाय माटे मुनिने ए भलाषण छे के तेणे एवे ममंगे पेहेला हाथ आगळ करी पछी पण आगळ घरवा. [६८१]
मुनिए मुसाफरखाना, वंगला के घरो मागी लेवामां घणं,सावचेत रहे. लेओनो जे मालेक अथवा कवनेदार मुखत्यार होय तेनी आप्रमाणे रजा लेवी" युप्मन् जो तमारी छा हो। तो तमारी रजाना अनुसारे अमे अत्रे एक माम के चार माम रहीश, अगर एटलो घग्दत आपनी अहिं स्थिरता दो ती ज्यां लगी आप अी दशा अश्या व्यां बुधी आपने करने आ मकान स्टो त्या सुपीन अमे एवं रही. (पाच गृहत्स्य पृछे थे तभे केटलानण अहीं रहेगो ना मुनीए संख्या नियम न पाइयो किंतु आ पगाण करें-) टला मुनिश्री भावंगे पटला रहीशु [६८२]
मुनि अधया प्रारीण जना मकानमा टेवे से धणीना नायटाम पटीन जाणी लेवा. अने न्यार बाद लेना घरची निमंत्रण उना के न ना भशुद्ध आहा