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आचाराग-मूळ तथा भाषान्तर. - से भिक्खू वा [२] से ज्जाइं पुण कुलाई जाणेज्जा; तंजहा, खत्तियाण वा, राईण वा, कुराईण वा, रायपेसियाण वा, रायवंसष्टियाण वा, अंतो बहिवासंणिविद्राण वा,गच्छंताण वा णिमंतेमाणाण वा, अणिमतेमाणाण वा, असणं वा (४) लाभे संते णो पडिगाहेज्जासित्ति बेमि [५६०]
चतुर्थ उद्देश. से भिक्खू वा [२] जाव पविठे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा मंसाइयं वा, मच्छाइयं वा, मंसखलं वा, मच्छखलं वा, आहेणं वा, पहेणं वा, हिंगोलं वा, संमेलं वा, हीरमाणं संपेहाए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहुओसा बहुउदया बहुउत्तिंगपणग-दग
महिय-मकडासंताणगा, बहवे तत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण• वणीमगा उवागता उवागमिस्संति, तत्थाइण्णा वित्ती, णो पण्णस्स
मुनिए चक्रवर्ति प्रमुख क्षत्रियो, राजाओ, ठाकोरो, सरदारो, के राजवंगी लोको, जेओ शहरमां के शहेर बाहेर रहेता होय या रस्ते प्रयाण करता होय तमने त्यांची निमंत्रण छतां या नहि छतां आहार ग्रहण न करवो. [५६०]
चोथो उद्देश.
[मुनिए जमणवारयां न जवू.] मुनिए गृहस्थना घरे भिक्षार्थे जतां तेने त्यां एवं जणाय के अहिं मांस, मत्स्य के मद्यवालुं विवाहभोजन, मृतकभाजन, या प्रीतिभोजन छे, अने तेने त्यां कोइ लइ जतुं होय, तोपण जो मार्गयां वीज, वनस्पति, टार, पाणी, के झीणा
जीवजंतु घणा होय अश्या त्यां घणाएक [बुद्धधमी] श्रमणो, ब्राह्मणो, वटेमागुओ, , 1 स्कार्मिको, क भाटचारणो, आवेला के आयवाना होय अन तेथी त्यां बहु भीड भवानी होय जेयी चतुर पनिने त्यां जg वळवू मुलभिग्लें थइ पडे अने
१ गृहस्यवां तमाम बाळानो समावेश थायछे.