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________________ আ ল -মূত যখ? গাফ, इह रहलु मिक्खू गाहावतीहिं वा, गाहाननिणीहि । वा, परिवायएहि का, एरिवाइयाहिं वा, एगब्भ सहि साडं पाउ भो बतिमिस्स हुरत्था वा उपस्तवं एडिलेहसाणे यो लज्जा , तमेव उवस्मयं समिस्सिमावभावजेज्जा अण्णम वा खे मते विपरियासिवस्ते इथिनिग्गहे वा किलीवे वा तं मिल्डं उक्सकमि बूया “आउसंतो सम्मरणा, अहे आरामसिधा अहे उपलयंति का राओ का, चियाले वा, गामधम्मणियंतियं कद्द रहास्तियमेहुणधरमपरियारगाए आउट्टामो." तं वेगतितो स्पतिज्जेज्जा। अकरनिज चेयं सखाए। एते.आयतमा संति सचिजमाणा पछावाया भवति लम्हा से संजए मियठे तहगार परेसवार्ड वा पच्छा संखडि वा खनादि 5 पापीत्वेत्यर्थ : २ पहिः ३ संखडिगगनं न कुर्यादितिशषः पळी ए सहा समोर पकया यह हस्यो, गृहम्धनी लीओ, परिमाका, सथा परिमाविका थिइने तो मुनि त्यो जइ एकठो भेळायाथी कदाच -- दिरापान पर फली एले १ अने तेथी ते मदिरामत्त बनी पोताना मुकामे न. हि पोहोसता त्पाल ललई दे छे. तथा त्या निसाना आवेशथी बेहोश थई वीजामा आसक्त भाय है. अश्या त्या रहेली हीओ के नपुंसकायार्नु कोइ एक मुनिपर आसक थइ कदा मांडे के के " हे आयुष्यन् श्रमण, आ बगीचामां अपवा उपाभरमा राते अथा अमुक वरदते जाणे एकता पब्बी भोगविलासी वसं. " म कही तेओ सुतिले विषयोधी ललचाची कबजे करे छे. अनेदेमां कदाच एकले सुन्नि फसाइ पण पडे छ, माटे ए बातले अकरणीय जाणीने मुनिए संखडिमां नहि ज{. कारण के त्यां जवाथी उपर जब तथा ते करता पण दरखते वधता धेरफायदा या संभर छे, गटेनिस संपतिपयूद संखदि के पात्रताडि भाजनाथै सदानो इरादो माह करतो. [६५१] करके लोलुप अनेम सर्द का समन्द.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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