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प्रस्तावना. समजवानो लाभ लेनाराओनी खामीछे, सूत्रोनी शैली अने तेमा रहेला दिव्य रहस्य समजवा माटे प्राकृत अने संस्कृत ज्ञाननी मुख्य जरूरछे परंतु तेटलुं ज्ञान घरावनाग सुभाग्ये हाल एक हजार जैनमाथी एकाद मात्र मळे. आवी दयामणी स्थितिने लइने जैन फिलोसोफीर्नु उत्तम ज्ञान घटतुं गयुं अने हजु पण घटतुं जाय तेमां आश्चर्य थवा जेवू नथी. आवा पारीक समये सुभाग्ये माजी प्रॉफेसर मॅससुलरना शिष्यो मि. हरमन जेकोबी, डॉक्टर हॉर्नल, मि. ओल्डनबर्ग, मि. वेवर डॉ. ल्युमॅन विगेरे पाश्चिमात्य विद्वानो-जर्मन ओरीएन्टल स्कॉलरोए जैन फिलोसोफीन यहत्व समजवा माटे मथन करी केटलाक आगमोना भाषान्नर अंग्रेजी भाषामां प्रसिद्ध कर्या, जे जोतां तेओनी विद्वता एक भवाने कबुल राख्या विना चालतुं नथी. अर्वाचीन जमानाने जैन फिलोसोफी समजचानो मुख्य भाधार आ विदेशी विद्वानोना भाषान्तर उपरज छे, कारण के संस्कृत तेमन प्राक्रत भाषामा निपुणता धरावनाराओनी संख्या जुज मात्र-नजीवी सरखीछे. प्रचलित-देशी भाषानां सारां भाषान्तरना तेमज संस्कृत ज्ञानना अभावे पुर्वोक्त पुस्तको पांचरा, हालना केळवाएलो वर्ग दोराय अने ते उपरथी जैन फिलोसोफी माटे मत बांधवा प्रेराय ए कोइ पण रीते अनुचित नथी. हवे प्रश्न ए थायछे के ए जर्मन विद्वानोए जे पुस्तको प्रसिद्ध काँछे अने तेमां जे विचारो दर्शाव्याछे ते जैन आगमो अनुसार यथातथ्यछे के नहि ? आ हवे तपासवानुछे.
इस्त्रीसन १८८४ नी सालमा ज्यारे मि. जेकोबीए आचारांग तथा कल्पसूत्रना भाषांतरो प्रसिद्ध कर्या, ते वखत जैन फिलोसोफी माटे समन जैन धर्मनी प्राचीनता माटेना तेना तथा वीजा विद्वानोना जे विचारो इता ते विचारो दश वर्ष पछी एटले इस्वीसन १८९५ नी सालमां ज्यारे श्री सूत्रकृतांग तथा उत्तराध्ययन सूत्रोना इंग्रेजी भापांतर प्रसिद्ध करवामां आव्या ते वखते घणाज बदलाएला जोवासां आवेछे प्रथम ओरीयेन्टल स्कॉलरो-ते विद्वानोनो पो आभिप्रायहतो के जैन ए चौद्धनी एक शारखाछे, अने चोदना मूळतत्वोनुं अनुकरण जैनोए करेल छ. हालना केळवणी खातामा जे इतिहासो चालेछे तेमां आज भावार्थशिक्षण अपातुं होवाची आपणा जैन वाळकोने पण तेवी भदा याय ए,