________________
प्रस्तावना.
काळनी गहन गति छे, पूर्वे एक समय एवो पण इनो के जे वखते पुस्तक-पानानी जरा पण जरुर न पडती, स्मरण शक्तिनुज साम्राज्य हतुं, एक वखत श्रवण करेलु “पुनः पुनः" याद लावनारां मनुष्यो विशेष इतां. आवा सुवर्ण-युगने विष ज्ञानी पुरुषो विद्यमान हता, जे उच्च स्थिति संपादन करवायी सर्वत्र दिग्विजय मेळवता इतिहासनी तवारीख उपरथी जणाय के के एवा समयमां जैन मार्ग सर्वोत्तमताने शिखरे विराजतो हतो. नेम दिवसने विषे सूर्यना, अने रात्रिने विषे चंद्रना तेजी, सर्वत्र प्रकाश थइ रहेछे सेम चरम-छल्ला तीर्थंकर श्री महावीर प्रभुनी हैयाती वखते अज्ञामरुपी अंधकार दूर थइ सर्वत्र ज्ञानरुपी प्रकाश छवराइ गयो हतो. ते भगवंतना निर्वाण परी धीमे धीमे मनुष्योनी स्मरण शक्ति घटती गइ, वे एटले सुधी के पूर्वनुं ज्ञान जाळवी राखवा माटे पुस्तको लखाववानी जरुर पडी. आनुं परिणाम ए ययु के पुस्तको लखावायी मनुष्यो वेदरकार बनता गया अने तेओए स्मरण शक्तिने ते गावतमा श्रम आपवो बंध कयों जे वखते पुरतको लखायां ते वखत श्रमण भगवंत श्रीमहावीर प्रभुना निर्वाण पछीना केटला एक सैका पछीनो हतो. ___आ प्रमाणे स्मरण शक्तिनी न्यूनता-अने दिनप्रतिदिन हानी यती मोइ ते वखतना पुरूषो, जेना आपणे घणाज आभारी छीए, तेओए जे काइ जोयेलं, सांभळेलु, अनुभवेलु हतुं ते बधु पोतानी ज्ञान शक्ति अने स्मरण शक्ति अनुसार लखावतुं शरु कर्यु. (ते पुरूषोनुं ज्ञान आजना जमाना करतो घणुंज चढीआतुं हतुं ). हालनी पेठे कागळो वीगेरे ऊपर नहि, पण ताडपत्रोपर ते सूत्रो लखायां इता. ते उपकारी पुरूषोने एवी भीति लागी के जो आ प्रमाणे स्मरण शक्ति घटती जशे तो ज्ञाननो लय थवानो समय नजदीक आवशे. अमण भगवंत श्रीमहावीर स्वामीना निर्माण पछी ९८०-९९३ वर्ष एटले इस्त्रीसन ४५४-४६७ नी सालचा अरसामां आवे अणीने समये श्रीवल्लभीपुर नगरने विषे श्रमण भगवंत श्री देवदि