________________
अध्ययन छटुं.
[तृतीय उद्देश:]
एयं खु सुणी आयाणं तया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णि
ज्झोसइत्ता । ( ३५९)
[ ९७]
ने अचेले परिवसिए तरस णं भिक्खुस्स णो एवं भवइ : - परि जिने मे वत्थे, वत्थे जाइस्यामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूई जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीविस्सामी, उक्कसिस्सामि, बोक्कसिरसामि, परिहरिस्सामि, पाउणिस्सामि । (३६०)
अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति तेउफासा फुसंति दंसमसगफासा फुसंति, एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहिया
१ धर्मोपकरणातिरिक्तंवस्त्रादि
त्रीजो उद्देश.
[मुनिए अल्प उपकरण राखवां अने शरीरने जेम चने तेम कसता रहेवुं.]
हमेशां पवित्रपणे धर्म साचवनार अने आचारने पाळनार मुनि धर्मोपकरण शिवाय सर्व वखादिक वस्तुओ त्याग करे छे. [३५९]
जे मुनि अल्पवत्र राखे छे अथवा तदन बलरहितर रहे थे, ते मुनिने आरी चिंता नयी रहेती, जेवी के मारां चत्र फाटी नयां छे, मारे चीजुं ननुं बन लां, लाछे, सोय न्याववी है, तथा व सांधवं छे, सीवट, चवाखं, तों छे, छे छे, के विटाळ . [३६०]
टित रहेता तेत्रा सुनियोने कदाच वारंवार शरीरमां तणखला के काँटा
१ ख बगेरे सामान २ जिनकन्पिणाम. ३ श्रीववानो दोरो.