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अध्ययन पांचमुं.
समणुन्नस्स संपव्ययमाणस्स समियं-ति मण्णमाणस्स एगया समिया होति, समियं ति मण्णमाणस्स एगया असमिया होति असमियं-ति मण्णमाणस्स एगया समिया होति, असमियं-ति मण्णमास्स एगया असमिया होति । (३१५)
समियं-ति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, समिया होति उवेहाए । (३१६)
असमियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, असमिया होति उवेहाए । (३१७)
उवेहमाणो अणुवेहमाणं ब्रूया-" उवेहाहि समियाए; इच्चेवं तत्थ संधी झोसितो भवति " । (३१८)
से उठियस्स द्वियरस गति समणुपासह । एत्थवि बालभावे १ प्रतिष्टां गतिवा..
श्रद्धालु अने सविनभाषित जीवो के जेओ दीक्षा लेती वखते "जिन भापितज सत्य छे." एवं माने छे तेओमांना केटलाएक त्यार वाद तेवीज श्रद्धा टकाची राखे छे अने केटलाएक संशयी वनी जाय छे. वळी जेओने शुरुआता पाकी श्रद्धा नधी होती तेओमांना केटलाएक उत्तर काळमां शुद्ध श्रद्धावंत यइ जाय छे अने केटलाएक तेवाने तेवाज रहे छे. (ए रीते परिणामनी विचित्रताछे)
जे पुरुपनी श्रद्धा पवित्र छ तेने सम्यक् या असम्यक् वस्तु बन्ने सम्यक् विचारणाथी सम्यक् रुपे परिणमे छे. [३१६] ।
अने जे पुरुपनी श्रद्धा अपवित्र छे, तेने सम्यक् या असम्यक् वस्तु अस म्यक् विचारणाधी असम्यक् रुपे परिणम छे. [३१७]
माटे सम्यकृविचार करनारा पुरुपे विचार नहि करनारा पुरुपने सम्यक् विचार करवा प्रेरित करवो के "हे पुरुप. तुं सम्यक् विचार कर, जे पाटे तेम कर्याथी ज संयममा कर्मक्षय करायछ."
हे मुनिओ, श्रद्धावंत अने गुरुकुलमां वसनार मुनिनी पदवी अने गति १ संविग्न एटले मुनि नेमणे भावित एटले समजावला.
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