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________________ ( 722) ॥ घत्ता ॥ अथिरेण असारें जीविएण । किं अप्पर सम्मोहहिं । तुह सिद्धहें वाणोधणुअहें । णवरसीरु ण दोहहिं ॥ १० ॥ तं णिसुणेप्पिणु दर विहसते । मित्तमुहारविंदु जोयंते ।। कसण सरीरें सुद्ध कुरुवें । मुद्धाएविगब्भसंभूवें ॥ ११ ॥ कासवगोत्ते केसवपुत्ते । कइकुलतिलए सरसयणिलएं। उत्तमसत्तें जिणपयभत्तें .... .... ॥ १२ ॥ पुप्फयंतकइणा पडिउत्तउ । भो भो भरह णिसुणि णित्तक्खउ । कलिमलमलिणु कालु विवररेउ । णिग्घिणु णिग्गुणु दुण्णयगारउ ॥ १३ ॥ जो जो दीसइ सो सो दुजणु । णिप्फलु णीरसु णं सुक्कउ वणु। राउ राउणं संझहें केरउ । अत्थे पयहइ मणु ण महारउ ॥ १४ ॥ उठवेउ जे वित्थरह णिरारिउ । एकु विपउ विरएवउ भारिउ । ॥ पत्ता। दोसेण होउ तं णउ भणमि, चोज्ज अवरुमणे थक्कउ । जगुएउ चडाविउ चाउ जिह तिह गुणेण सहवंकउ ॥ १५ ॥ जयवि तोवि जिणगुणगणु वण्णमि । किं पई अब्भत्थिउ अवगण्णमि। चाय भोय भाउग्गमसत्तिए । पई अणवरय रइय कइमित्तिए ॥१६॥ राउ सालिवाहणु वि विसेसिउ । पइं णियजसु भुवणयले पयासिउ । कालिदासु जें खंधे णीयउ । तहो सिरिहरिसहो तुहुँ जगि बीयउ ॥१७॥ तुहुं कइकामधेणु कइवच्छलु । तुहुं कइकप्परुक्खु ढोइयफलु । तुहुं कइसुरवरकीलागिरि वरु । तुहुँ कइरायहंसमाणससरु ।। १८ ॥ मंदु मयालसु मयणुम्मत्तउ । लोउ असेसु वि तिट्टए भुत्तउ ।। केण वि कव्वपिसल्लउ मण्णिओ। केण । भणेवि अवगाण्णिउ॥१६॥ णिच्चमेव सब्भाव पउंजिउं । पई पुणु विणउ करेवि हउं रंजिउं । ॥ पत्ता ॥ धणु तणुसमु मज्झण तं गहणु णेहु णिकारिमु इच्छमि। देवीसुअ सुदणिहि तेण हउं णिलए तुहारए अच्छमि ॥ २० ॥ महु समयागमे जायहें ललियहें । वोलंइ कोइल अंबयकलियहें। काणणे चंचरीउ रुणुरुंटइ । कीरु किण्ण हरिसेण विसदृइ ॥ २१ ॥ मझु कइत्तणु जिणपयभत्तिहें । पसरइ णउ णियजीवियवित्तिहें । विमलगुणाहरणंकियदेहउ । एह भरह णिसुणइ पई जेहउं ॥ २२॥
SR No.011136
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscript in the Central Provinces and Berar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages491
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size36 MB
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