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अवर खणु गुणहंतु । दियहेहिं परायउ पुप्फयंतु । दुग्गम-दीहर-पंथेण रीणु । णव इंदु जेम देहेण खीणु ॥ ३ ॥ तरु-कुसुम-रेणु-रंजिय-समीर । मायंद - गुंछ - गोंद लिय- कीर । दवणे किर वीसमहं जाम । तहिं विष्णि पुरिस संपत्तताम || ४ || वेणुतेहिं तु एव । भोखण्डगलिय पावावलेव । परि भरि भमर रवगुमुगुमंति। किं किर णिवसहि णिजणे वर्णति ॥ ५ ॥ करिसर वहिरिय चिक्कवाले । पइसरहिण किं पुरवरे विसाले । सुणिवि भणइ अहिमाणमेरु । वरि खज्जउ गिरिकंदर कसेरु || ६ || उ दुजण भउहा कियाई । दसिंतु कलुसभावं कियाई ।
॥ घत्ता ॥
वरुणवरु धवलच्छ, होउ मकुच्छिहे, मरउसोणिमुहणिग्गमे । खलु कुच्छिय पहु वयणई, भिउ डिय णय णई, मणि हालउ सूरुग्गमे ॥७॥ चमराणिल उड्डावियगुणाएं । अहिसेय-धोय-सुयणत्तणाएं | अविवेय दत्तालियाएं । मोहंघयाएं मारणसीलाएं ॥ ८ ॥ सत्तंगरज्जभरभारियाएं | पिंड पुत्तर - मण रसयारियाएं | विससहजम्मएं जडरत्तियाएं । किं लच्छिए विउसविरत्तियाएं ॥ ९ ॥ संपइजणु णीरमुणिव्वसु । गुणवंतउ जहिं सुरगुरुवि देसु ।
अहं इ काणणु जे सरणु अहिमाणें सुहुं वरि होउ मरणु ॥ १० ॥ इंदराएहिं तेहिं । आयण्णिय तं पहसियमुहेहिं । गुरु-विणय-पणय-पणविय-सिरेहिं । पडिवयणु दिष्णु णायर गरेहिं ॥ ११ ॥
॥ घत्ता ॥
जणमणतिमि सारण, मयतरुवारण, णियकुलगयण दिवायर | भोभोरुह, णवसररुहमुह, कव्वरयणरयणायर ॥ १२ ॥ भंडमंडवारूढ कित्ति | अणवरय रइय जिणणाहभत्ति । सुहतुंगदेवकमकमलभसलु । णीसेसकलाविण्णाणकुसल ॥ १३ ॥ पाययकइकव्व रसावलुडु | संपीय सरासइसुरइदुद्ध | कमलच्छु अमच्छरु सच्चसंधु । रणभरधुरधरणुग्धिट्टखंधु ॥ १४ ॥ सविलासविलासिणिहिययथेणु । सुपसिद्ध महाकइ कामधेणु । काणीणदीणपरिपूरियासु । जसपसरपहा सियदसदिसासु ॥ १५ ॥ पररमणिपरम्मुहु सुद्धसीलु । उण्णयमइ सुयणुद्धरणलील । गुरुयणपयपणवियउत्तमंगु । सिरिदेविअंवगब्भुब्भवंगु ॥ १६ ॥