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DESCRIPTIVE CATALOGUE OP AYURVEDIC MANUSCRIPTS
Both in the beginning and at the end texts are incomplete. There is no mention of author's name in the
MS. The work deals with various kalpas, such as शतपुष्पाकल्पः , सिद्धिमूलकल्पः etc. Beginning :
........... शं कुर्यात् कि पुनः प्राक्त(कृ)तो जनः ॥५०॥
औषधी जुहुरगत् प्राज्ञः सर्व(वी) कामफलप्रदां (दाम्) । त्रायते सर्वसत्वानी (नि)व(ब)लामोटानशं .............. ।
................ न्मे निगदितः शृणु ॥ हिमोद्भवं समून (ल) च सूक्ष्म.....
... द्वार्थकसम(म)न्वित (तम्) ॥ End :
इति कल्पसागरे तंडुलीकल्पः । ................ सुमतीदेवि रुदंती प्रमिता तु सा । कनकाभा भवेत् सापि उत्पन्ना........... तेजसा ॥१॥ उदकारक्तकुसुमं पत्राने तोयविंदवः । रसवडकरी सा तु रव्या (व्याख्याता तु महौषधी ॥२॥ सर्वत्र जायते येषा औषधी परमा शुभा । ग्रामं सातिविधे क्षेत्रे अन्यत्र परिवर्धयेत् ॥३॥ देव................
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G-8384 काकचण्डेश्वरी (काकचण्डेश्वरीतन्त्रम्) Kākacanqeśvari (Kākacaņqeśvaritantram) Substance: Country-made paper. Sue: 26.2x11 cms. For los: 5-14-10. Lines: 5-13. Letters: 47. Script : Nāgari. Condition : Presh. Edent : Incomplete. - Title is mentioned in some follo as "काकडेश्वरिमतः" Author's name is not mentioned in the MS. There are