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86 DESCRIPTIVE CATALOGUE OF AYURVEDIC MANUSCRIPTS
त्रिफला किरायामैमासो किरमालोस्ममात्रामजीटादी काटो
करीयीजें अटारे कोटजायचामडीरो रोगस्यस्तवादिषुरोग यांति ॥२२॥ Colophon : (F. 170)
इति कालज्ञाने वैद्यकज्वर (रः)। जंति ॥ सं. १८४५ Beginning : (F. 170)
पित्तज्वर विषपर पटादि काथदोष पित्तपापजो
किरमालो कटुक मोथहरडेयां ओषदां(धा)रो काथः ॥१॥ End :
कंदरपवधैमाहापुष्टकारीधणीसत्रीयांनसेवै
कांमोदिपन दुवै इति चरम्यादितेल संपूर्ण ॥७८॥
(कन्दर्पवधे महापुष्टिकारी मुणी स्वीयां न सेव्यै । कामोडीपन द्रव्यैः इति चरम्यादि तैलंसंपूर्णम् ॥)
65 G-4697 (A)
कालज्ञानम्
Kālajñānam by Sambhu Substance : Country-made paper. Size : 20.4 X 11 cms, Fo lios: 6. Lines : 11. Letters : 27. Script : Nagari. Condition : Old, discoloured, musty. Extent Incomplete.
The text contains 1-97 verses of which last two verses are without any verse number. F. la contains a content of Yogašataka where Kalajñānam is mentioned first. Beginning :
स्वस्ति श्रीगणेशाय नमः॥ कालज्ञानकलायुक्त शंभुना यवभाषितं(तम्)। मासः(चोरभिरह) (पूर्व) जायते मृत्यु(त्युः) रोगिणा (नाम्) ॥१॥