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PART I. जैन-धर्म।
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लोगोंका अनुमान है कि बुद्ध-धर्म आरम्भके आरंभ । पास पास ही जैन धर्मका प्रकाश हुआ । यद्यपि
जैन यह मानते हैं कि जैन धर्मके मूल प्रवर्तक श्रीपारसनाथ थे जो भगवान् बुद्धसे लगभग ढाई सौ वर्ष पहले हुए । जैन धर्मके बडे मूल पुरुष श्रीवर्धमान महावीर हुए हैं। वे भगवान बुद्धके समकालीन थे । महाबीरजी मगध देशके राजकुमार थे । पूर्ण युवाकालमें वे संसारका परित्याग करके पारसनाथजीके सम्प्रदायमें सम्मिलित हो गये । कुछ वर्षके पश्चात् उन्होने एक नवीन सम्प्रदायकी नीव डाली और अपनी शिक्षाका खूब विस्तर किया। उनके जीवन-कालमें अनेक राजपरिवार उनके श्रद्धालु थे, क्योंकि माताकी ओरसे उनका तीन राजपरिवारोंसे सम्बन्ध था। उनके देहान्तकी तिथिके विषयमें बहुत मतभेद है । प्रायः लोग ईसाके पूर्व ५२७ वां वर्ष निश्चित् करते हैं। अध्यापक जेकोबीकी सम्मतिमें वे सन् ४७७ ईसा पूर्वमें पंचत्वको प्राप्त हुए ।
जैन-धर्मकी शिक्षा अधिकांश बौद्ध-धर्मकी जन-धर्मकी शिक्षासे मिलती है । परन्तु सिद्धांत-रूपसे शिक्षा। दोनों धर्म भिन्न भिन्न है। जिस प्रकार बौद्ध
धर्मने हिन्दू समाजमें पूर्ण परिवर्तन नहीं किया और उसमें क्रान्तिकारी हेरफेर उत्पन्न करनेकी चेष्टा नहीं की, उसी प्रकार जैन धर्मने भी तत्कालीन हिन्दू-समाजका सुधार करनेका यत्न किया । उसने न तो जाति-पांतिको उखाडा, न देवी देवताओंको जवाब दिया, और न उनके रीति रिवाजोंमें बहुत हस्तक्षेप किया । बौद्ध-धर्मकी तुलनामें जैन साधु बहुत अधिक त्यागी हैं । जैन-धर्मकी पूजन-विधि भी बौद-धर्मसे भिन्न है।