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________________ 127 यह गुप्त आक्षेप सर्वथा अयोग्य हैं. ओंने स्वधर्म स्वदेशके रक्षणार्थ बडे बडे मारी युध्ध किये हैं। यह इतिहास सिध्ध है. भगवान महावीरजीका श्रावक श्रेणिक उर्फ बिंबसार, उदायन, चेडा, चंडप्रद्योत, कूणिक, कुनाल, चंद्रगुप्त, संप्रति, खारवेल, हर्षवर्धन, शिलादित्य, आम, वनराज, और कुमारपाल यह सब जैन थे-और स्वधर्म स्वदेश स्वप्रतिज्ञाके रक्षणार्थ इन्होंने अनेक युध्ध किये थे. बेशक व्यर्थके कलह, और निष्कारण युध्ध वा मारकाट को जैन लोग अनुचितही समझते हैं. अहिंसाका सिध्धान्त शान्तिजनक सात्विक और मामाजिक संगठन करनेवाला होनेसे नैतिक और राजकीय दृष्टिसे महत्व पूर्ण है. जैन लोग ईश्वरमें कर्तृत्वका इनकार करते हैं। अस्तित्वका नहीं. जैनोंमें अरिहंत व सिद्ध परमात्मा - सर्वज्ञ जीवनमुक्त और मुक्त परमात्मा जीवकम. माने गये हैं युरोपिय कमेटी देह-आत्माको भिन्न नहीं मानती है, न तो ईश्वरमें सर्वशत्व आवश्यक समझती है अतः दोनोंका मुकाबला अयोग्य है. जैन दर्शनमें जीव और कर्मका सिध्धान्त शास्त्रीय रीतिस भेदोपभेद सहित वर्णित है. और वृक्षादि मजीव हैं ऐसा प्रसिद्ध-विज्ञान शास्त्री जगदिशचंद्र बोजने प्रयोगभी कर दिखाया है. जैनोंके आचार दो भागोंमें विभक है. एक भागमें : मुनियोंका आचार है और दूसरे भागम - गृहस्थोंका-गृहस्थोंमें भी लघुव्रत धारण करने वाला व्रती और सम्यक्त्व धारण कर मात्र जिनदेव गुरु और धर्म में ही श्रध्धा रखनेवाले अव्रती कहलाते हैं । साधु हिंसा झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांच पापोंका सर्वथा त्याग करता है. गृहस्थ व्रती और अव्रती अपनी शक्ती और सांसारिक परिस्थितिके अनुसार त्याग
SR No.011046
Book TitleHistorical Facts About Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Lajpatrai
PublisherJain Associations of India Mumbai
Publication Year
Total Pages145
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size8 MB
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