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- टर. हर्मनजेकोबी डॉक्टर. वुल्हर आदी पाश्चात्य विद्वान और लोकमान्य तिलकादि भारतीय विद्वानभी जैन धर्मकोवेद धर्म जितनाही प्राचीन और स्वतंत्र मानते हैं.
पाश्चात्य विद्वानोंने श्री महावीर और श्री पार्श्वनाथको ऐतिहासिक पुरुष माने हैं । औरजै नधर्म उससमयसे चला आता है कि जिससमय तक इतिहास नहीं पहुंचसक्ता यह बात बिलकुल सप्रमाण सिद्ध हो चुकी है.
जैन धर्म बौद्ध धर्मसे सर्वथा पृथक है दोनोंमें . कुछ शाब्दिक और सांप्रदायिक समानता
- इसलिये है कि भगवान महावीर और _ शिक्षा. भगवान बुद्ध समकालीन थे, बौद्ध मृतक पशुके मांसका भक्षण निर्दोष समझते हैं और इस मांस भक्षणको वो हिंसा जन्य पापसे दूषित नहीं मानते तथापि रसलौल्यसे और प्रवृत्ति दोषसे बहुत लोग जीते जानवरोंको मारकेभी खाते हैं. और उसमें दोष नहीं मानते
और जैन लोग यथार्थ रूपसे अहिंसाके प्रतिपालक हैं. जैनसाधु पूर्ण रूपस शास्त्र विहित अहिंसाको आचरणमें लाते हैं और गृहरण सांसारिक कार्योको लक्षमें रखकर यथासाध्य अहिंसाका पालन करते हैं। गृहस्थोंके लिये निरपराधी मनुष्यही नहीं बल्के पशुपक्षि तकको सताना पाप है.
और साधुओंके लिये तो अपराधियोंकोभी क्षमा देनेका विधान है. जैन गृहस्थका अहिंसा व्रत साधुके अहिंसावतसे बहुत छोटा है-अर्थात् साधु निसबत सोलहवें हिस्से में स्थित है.
"अतः अहिंसाका सिध्धान्त जैनोन चरम सीमातक ऐसा पहुचा दिया कि कुछ लोग जैन होना पहेले दर्जेकी कायरता समझते हैं." . . . .. .. . .