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। रतन परीक्षक।
॥ चौपई॥ ॥ अथना कीमत घाट विचारे । कोडी आने आठ समारे ।। ॥ वीस रुपए कोडी सोई । रंग ढंग शुभ दायक सोई॥ !! थोडी चमक तोल कम जाने । पत्थर नर्म निरदोष पञ्जानें। ॥ देखतही मन हर्ष दिखावे । सो उत्तम शुभ दायक भावे । ॥ यामें ऐच कितने सुन सोई। मकडी जाल वत जाला होई॥ ॥ जिस के भीतर सुईदर सावे । अती निंद निर धनतो ल्यावे ॥ १ को परीक्षा उत्तम पारे । धनसुख संतति अधिक विनारे॥ । करि परीक्षा निश्चा होई। संगहा रत्न को सभ कोई।। }} कस बट्टी या अगी जालो । सान शब्द सुन निश्चा मानो। । सान शब्द पर नर्म सुनावे । सो उत्तम गोमेद कहावे ॥ ॥ नीलम शब्द सुने जब कोई । गजचिंकार वन अतिकर सोई ।। ॥हीर का फुनि शब्द विचारे । पवन वेगज्यों अति बल धारे।
वंद होय निकस धुकावे । सांसां सन्न सन्न सुनपावे ॥ ।। जावि। उत्तम शब्द पछने । कर निश्चा सुख संग्रह माने । ॥ उत्तम रतन एक जब आवे । सभी रतन का मेल वनावे ॥ ॥ ताकर रतन परीक्षा धारे । गथ मिनी गुण दोषविचारे ॥ ॥ विन विचार संग्रह नरक रहे। सुख शोभा तज आपद परहै ।
इति श्री गोमेद विज्ञान। ॥ अथ पुखजि विधा नम
॥दोहा॥ ॥ पुखराज होत नीलमजहां। माणीक तहाँ विचार ॥ ॥ अभ्रक कोला संग है । हिम गिर सिम्बर सम्हार॥
॥चौपाई॥ ॥प्रभात सूर्य बतआभा जानो। यो सुवर्ण कुंदन वत मानो । ॥ गुरु देव पीला रंग भावे । उत्तम छाया पोत दिवावे ॥