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। रतन परीक्षक। ॥ आपद काल जहु आवे। सुरंग रंग माणिक लेजावे ॥ ॥ जब सुरंग माणिक में होई । आपद काल दर कहु सोई॥ ॥माणिक नेत्रन साथ घसावे। नेत्र रोग निश्चय हट जावे॥ ॥ दृढ माणिक काटे जब कोई। तब नीलम से काटों सोहोई॥
इति श्री माणिक विनम् ॥२॥
॥ अथ लमुनी विधानम ||
॥ ब्रह्मा देस विचारीए । सेलांन देस में जान ।। ॥ देस हिमाले होत है। ऊची जागा मांन ॥
॥ पुखराज जहां पैदा जग जानो। उत्तम लसुनी तहां पछांनो॥ ॥ स्याही ऊपर भूत पछांनो । रंग बैडनी उत्तम मानो। ॥ मोर कंट वन उत्तम होई। वांस पत्र वत मानो सोई॥ ॥मोजीर नेत्र वत चमक दिखावे । स्तिपतोल निर्मल चमकाये। । पांचो गुण आगे सुन सोई । सुम्ना नाम अति चमकित होई।। ॥ सुंदर घाट देख मन भावे । धन संतति सुख जस प्रगटावे॥ ॥ जोघन नाम तोल अतिजाला। निरीह देह संपत सुख माने। ॥निर दोष होए प्रत्यछ कहावे । धन सुख शोभा वांछित पावे॥ ॥रंग ढंग सुंदरता जांगे । अध्यंग नाम शुभदायकमाने। ॥ चंद्र कला क्त चिन्ह दिखावे । कलिक नाम वहु वृद्धी पावे ॥ ॥पाच दोष आगे सुन सोई । खारी कर्कर नामा होई ।। ॥ रूक्ष चमकविन सो दर सावे । बंधु नास गुण ताको गावे ॥ ।। सर्क नाम दिया जानो। कुल नासक दुखदायकमानों। ॥ विन टूटे संदेह लखावे । त्रास नाम सभ नास करावे ॥ ॥ सा रंग मध्य में होई । कलंक नाम दुखदायक सोई॥ ॥ मध्य मलोन चमकविन जाने। देह दोष भय दायक माने ।