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स्वदेशी-आन्दोलन और बायकाट ।
रिव्यू' के गत दिसम्बर मास की संख्या में प्रकाशित हुआ है। उसमें आपने इस देश की गत वर्ष की स्थिति की आलोचना करते हुए स्वदेशी आन्दोलन के संबंध में यह लिखा है कि- “यद्यपि इंग्लैन्ड-निवासी हिन्दुस्थान के संबंध में सदा बेफिकर रहते हैं, तयापि इस वर्ष उन लोगों का ध्यान हिन्दुस्थान की ओर कुछ विशेष रीनि से, अधिक आकर्षित हुश्रा है। इसके प्रधान कारण 'वंग-भंग', 'स्वदेशी आन्दोलन' और 'बायकाट' हैं। बंगाल के दो टुकड़े करने में सरकार ने जो बेकायदा कार्रवाई की उससे अप्रसन्न होकर लोगों ने विलायती (अंगरेजी ) वस्तु के त्याग की अटल प्रतिज्ञा की । इस आन्दोलन का प्रधान हेतु यही है कि, अगरेजव्यापारियों के जेब को धक्का देकर उनका ध्यान हिन्द्रस्थान के राजकाज की ओर आकर्षित किया जाय और उनके द्वारा, हिन्दस्थानियों की अभिलापाओं और हकों पर ध्यान देने के लिये, सरकार को मजबूर किया जाय । यह हेतु कुछ अंश में सफल हो गया है। हिन्दुस्थान के संबंध में, इस से अधिक, किसी अन्य विषय ने, अगरजा का मन आकर्षित नहीं किया था । इस विषय के जो समाचार तार में आने हैं उनसे अगर जी के मन में बहुत व्याकुलता उत्पन्न हो रही है । इंग्लैन्ड में बादविवाद के जो साधारण विषय समझे जाने हैं उन्होंमें अाजकल बंगाल के 'बायकाट' की भी गणना की जाती है और उस विषय पर मभाओं में खूब चर्चा होती है । सारांश, अब यह बात इंग्लैन्ड का एक अदना आदमी भी जानना है कि, वंग-भंग से हिन्दुस्थानियों का मन अप्रसन्न और असंतुष्ट हो गया है । क्या यह लाभ थोड़ा है ? यदि यह आन्दोलन बंगाल में इसी तरह होता रहे, और यदि वह और और प्रांतों में भी होने लगे -- इसमें संदेह नहीं कि वह सब प्रांतों में शीघ्र ही फैल जायगा -तो उससे हिन्दुस्थान में एक महत्व को साम्पत्तिक क्रान्ति हो जायगी"। हमारे स्वदेशी आन्दोलन के संबंध में इस प्रकार अपनी सम्मति प्रकट करके काटन साहब हम लोगों को उपदेश देते हैं कि “ हे भारतवासियो, धैर्य और अच्छे दिल से उद्योग करो। तुम लोगों के विरुद्ध जो कार्रवाई की गई थी उसका अब अंत होनेवाला है। इस समय तुम लोगों ने जो तरको की है उसको शायद