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________________ 'स्वदेशी " स्वयं सेवक । और कवि, गवैया, नाटकवाले, तमाशेवाले की कुछ कभी नहीं है । यदि ये लोग अपने अपने व्यवसायों में 'स्वदेशी' को प्रधान स्थान द्वारा इस आन्दोलन के चिरस्थायी हो जाने की बहुत कुछ सकती है। दें तो उनके आशा की जा ६५ हां, यह बात सच है कि 'स्वदेशी' को उक्त प्रकार करने का यत्न बहुत कठिन हैं। हम जानते हैं कि यह काम के समुद्रमंथन के समान अत्यंत विकट है। समुद्रमंथन से अनेक बहुमूल्य रत्न उत्पन्न हुए थे; परंतु उन्हीं के साथ, प्रथम, हलाहल नाम का भी उत्पन्न हुआ था । और जब श्रीशंकर भगवान् ने उस विप को स्वयं अपने कण्ठ में रख लिया, तभी देवताओं को, अंत में, अमृत प्राप्त हुआ । इससे हम लोगों को यहीं शिक्षा लेनी चाहिए कि, यदि हम अपने स्वदेशी आन्दोलन से लाभ उठाना चाहते हैं -- यदि हम राष्ट्रमंथन द्वारा अपने मृतप्राय देशभाइयों को सजीव करना चाहते हैं -- तो हमको उससे उत्पन्न होनेवाली आरंभिक आपदाओं को -- प्राथभिक कष्टों को -- अवश्य महना पड़ेगा । जबतक हम लोग ( अर्थात् जिन लोगों को 'स्वदेशी' स्वयं सेवक बनकर इस आन्दोलन को चिरस्थायी करने की इच्छा है ) हर किसम के दुःख, कष्ट और आपदाओं को खुशी से सहने के लिये तैयार न होंगे, तबतक राष्ट्रमंथन का हमारा कार्य कदापि सफल न होगा | जबतक हम लोग अपनी क्षुद्र स्वार्थबुद्धि का त्याग न करेंगे; जबतक हम लोग अपनी मातृभूमि के लिये आत्मार्पण न करेंगे; जबतक हम लोग अपने देश को सजीव करने की अटल प्रतिज्ञा न करेंगे; तबतक हमारे स्वदेशी आन्दोलन में चिरस्थायी शक्ति उत्पन्न न होगी । अतएव हमारी यही प्रार्थना हैं कि ' स्वदेशी ' स्वयं सेवकों को, किसी प्रकार के संकटों से भयभीत न होकर, अपने देश के हित के लिये अपने कर्तव्य में सदा तत्पर और लीन रहना चाहिए । से चिरस्थायी प्राचीन समय अमृत और सर हेनरी काटन का नाम इस देश के बहुतेरे लोगों को विदित | आपने गत वर्ष की कांग्रेस को एक संदेसा भेजा था । वह 'हिन्दुस्थान
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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