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स्वदेशी-भान्दोलन और बायकाट।
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६८ पौंड ६ शिलिंग ८ पेन्स कर लगाया जाय, ढाका की १०० पौंड की मलमल पर २७ पौंड ६ शि० ८ पे० कर लगाया जाय और हिन्दुस्थान के रंगीन कपड़े की आमद बिलकुल बंद कर दी जाय । जत्र अंगरेजों ने यह देखा कि इतना कड़ा कर लगाने पर भी हिन्दुस्थान की चीजें इंग्लैन्ड में बिक्री के लिये आती ही हैं, तब उन लोगों ने सैकड़ा २० पौंड कर
और बढ़ा दिया। अब १०० पौंड कीमत की छीट पर ७६ पौं०६ शि० ८पे० और मलमल पर ४७ पौं० ६ शि०८० कर हो गया ! इस प्रकार, सभ्यता के उपायों से, सभ्यता की घमंड करनेवाले अंगरेजों ने. इस देश के व्यापार को मिट्टी में मिला दिया !! यह भारतवासियों का दुर्भाग्य है !!!
अंगरेजों ने सभ्यता के जिन उपायों से हमारे व्यापार का नाश किया उनके सम्बन्ध में अंगरेज़ इतिहासकार (मिल और विलसन ) लिखते हैं कि “हिन्दुस्थान लिम देश के अधीन हुआ है उसके ( अर्थात इंग्लैन्ड के ) अन्याय का यह एक विषाद-जनक (खेद-कारक ) उदाहरण है । सन् १८१३ ई. की तहकीकात से यह मालूम हुआ कि हिन्दुस्थान के सूती और रेशमी कपड़, विलायत में बने हुए कपड़ों से, ५०-६० सैकड़ा कम दाम पर बिकते थे। तब अंगरंजा को, हिन्दुस्थानी कपड़ों पर ७०-८० सैकड़ा कर लगाकर, और हिन्दुस्थानी कपड़ों का व्यवहार बंद करके, अपने व्यापार की रक्षा करनी पड़ी। यदि ऐसा न किया जाता - यदि इस प्रकार निषधक-कर लगाकर हिन्दुस्थान के व्यापार में बाधा डाली न जाती-तो पेज्ली और मंचेम्टर की मिलें शुरुआत ही में बंद हो जाती और फिर वे भाफ के वल से भी चलाई जा न सकीं। यथार्थ में वे (पेज्ली और मंचस्टर की मिलें ) हिंदुस्थान के व्यापार को बरबाद करके चलाई गई हैं। यदि हिन्दुस्थानी स्वतंत्र होते तो वे इस अन्याय का बदला अवश्य लेते-वे भी अंगरेजों के माल पर निषेधक-कर लगाते और अपने उत्पादक तथा लाभदायक व्यापार की रक्षा करते । परंतु उन लोगों को, प्रात्मरक्षा के उक्त स्वाधीन उपाय की योजना करने की परवानगी न थी। वे सर्वथा विदेशियों की कृपा के अधीन थे ! उन लोगों पर विलायती चीजें जबरदस्ती से लाद दी जाती थी और उन चीजों पर कुछ कर भी लगाया नहीं जाता था।