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म्वदशी-आन्दोलन और बायकाट ।
विषयप्रवेश।
इस लेख के शार्पक में कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनका अर्थ स्पष्ट रीति ... से प्रारंभ ही में बतला देना चाहिए। पहिले सबसे अधिक महत्व का शब्द · स्वदेश' है । हम जानते हैं कि आजकल इस शब्द का व्यवहार कुछ शिक्षित लोग करने लगे हैं ; परंतु इसका यथार्थ ज्ञान बहुतही थोड़े लोगों के हृदय में प्रतिबिम्बित हुआ देख पड़ता है। वास्तव में इस शब्द का यथार्थ ज्ञान इस देश के सब लोगों को इस पवित्र आर्यमाता की वत्तीस करोड़ सन्तान को-होना चाहिए । जब लड़के पाठशाला में जाते हैं तब उन्हें भूगोल पढ़ाया जाता है। उससे वे यूरप, अमेरिका, आफ्रिका आदि भू-खण्डों के भिन्न भिन्न देशों का हाल भलीभांति सीख लेते हैं; परंतु बड़े खद की बात है-बड़े शोक की बात है--कि वे अपने देश के संबंध में कुछ भी नहीं जानते! यद्यपि नकशं पर वे अनेक स्वतंत्र-देश देखते हैं तथापि व इम बात का कभी विचार तक नहीं करते कि 'अपना' दश कहां है- स्वदेश' की दशा कैसी है ! इसीलिये हम कहते हैं कि यद्यपि इस समय स्वदेश' शब्द का उपयोग करनेवाले बहुतसे लोग हैं, तथापि उस मोहक और जादृ मे भरे हुए शब्द के मर्म का-उसके ज्ञान और उसकी शक्ति को-पहचाननेवाले बहुत ही थोड़े हैं। अतएव इस लेख के पढ़नेवालों को स्मरण रखना चाहिए कि, गत वीर्ध में भारतवर्ष की सच्ची उन्नति का जो बीजारोपण किया गया, और जिमके आन्दोलन से सारा देश कैप गया, उसका मुल-कारण 'स्वदेश' ही है। अर्थात स्वदेश ही के लिये यह उद्योग किया गया, स्वदेश ही के लिये यह उद्योग अबतक किया जा रहा है और स्वदेश ही के लिये यह उद्योग भविष्य में भी जारी रहेगा; क्योंकि स्वदेशभक्ति और स्वदेशाभिमान जैसे उच्चतम और गंभीर भाव ही इस उद्योग के आधारस्तम्भ हैं।
वंगभंग के कारण इस देश में जो अद्भुत आन्दोलन हुआ-जो विलक्षण हलचल हुई-उसका वर्णन समाचारपत्रों के पढ़नेवालों ने, भिन्न भिन्न पत्रों में, अवश्य पढ़ लिया होगा । तथापि एक स्वतंत्र लेख में, तात्विक रीति से,