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परिशिष्ट
On seeiny this ordinance, let the land be measured and assigned, and let none molest the Yatis, but foster their privileges. Cursed be he who infringes then-the cow to the Hindu-the hog and corise to the Mussalman.
(By command) Samyat 1749, Malisnd 5th, A. D. 1693.
___Sah Dyal, (Minister.) देखो टॉड साहबकी बनाई पुस्तक " राजस्थानकी" जिल्द १ का
अपंडिक्स नं. ५, पृष्ट ६९.६ और ६९७. महाराना श्री राजसिंह मेवाड़के दश हजार ग्रामोंके सरदार, मंत्री और पटेलोंको आज्ञा देता है सब अपने १ पदके अनुसार पढ़ें: , प्राचीनकालसे जैनियों के मंदिर और स्थानोंको अधिकार मिलाहुआ है इस कारण कोई मनुष्य
उनकी सीमा ( हद ) में विवध न कर यह उनका पुराना हक है जो जीव नर हो या मादा, वध होने के अभिप्राय से इनके स्थानसे गुजरता है वह अमर होजाना
है ( अर्थात् उसका जीव बच जाता है.) ३ राजद्रोही, लुटेरे और काराग्रहसे भागे हुए महापराधीको जो जैनियोंके उपासरेमें जाकर शरण ल,
राजकर्मचारी नहीं पकड़ेंगे. फसलमें कूची ( मुद्री ), कराना की मुद्री, दान करी हुई भूमी, धरती और अनेक नगरों उनके
बनाये हुए उपासरे कायम रहेंगे. ५ यह फरमान ऋषि मनुकी प्रार्थना करने पर जारी किया गया है जिसको १५ बाघ धानकी भूमिके
और २५ मलेटीके दान किये गये है। नीमच और निम्बहीर. प्रत्येक परगने में भी हरएक अतिको इतनी ही पृथ्वी दीगई है अर्थात् तीनो परगनोंमें धानकै कुल बीघे और मलेटीके ७५ वीघे ।
इस फरमानके देखते ही पृथ्वी नाप दी जाय और दे दी जाय और कोई मनुष्य जतियोंको दुःख नहीं दे. बल्कि उनके हकोंकी रक्षा करे. उस मनुध्यको विकार है जो उनके हकोंको उलंघन करता है। हिंदुको गौ और मुसलमानको मृअर और मुदीरकी कसम है।।
( आज्ञासे) सम्बत १७४९ महमुद ५बीईस्वी सन १६९३.
शाह दयाल ( मंत्री.)
लेख नं. ७ हम यहां व्यासकृत वेदान्तसूत्रमें जो जैनियोंका वर्णन आया है
वह शंकराचार्यके भाष्यके सहित लिखते हैं.
अध्याय २ रा. पाद २ रा.
नकस्मिन्नसम्भवात् ॥ ३३॥ निरन्तः सुगतसमयः विवसन समय इदानीं निरस्यते । सप्त चषां पदार्थाः सम्मता जीवाजीवात्रव संवर निर्जराबन्धमोक्षा माम। संक्षेपतस्तु द्वावत्र पदार्थी जीवाजीवाल्यो यथायोग्यतयोरेवेतरान्तरर्भावादिति