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जैनधर्मपर व्याख्यान. अर्थ-पापका नाश करनेवाला अरिहन यह उसका नाम है आपको भी वह कार्य करना चाहिये जिससे कि लोगोंको सुख होवे. __ अर्हत् नामका कोई राजा नहीं था। ऋषभ स्वयं अर्हत् वा अरिहंत थे. क्योंकि वे स्तुति योग्य थे । और कर्मरूपी वैरियोंका नागकरने वाले भी थे. अगर अहंदराजाने कलियुगमें जैनमत चलाया होता तो ऋषभको वाचस्पतिकोषमें जिनदेव और शब्दार्थ चिन्तामणि आदिजिनदेव क्यों कहा होता जो ऋषभ भगवदवतार भेदे आदिनिने ४२३ ( शब्दार्थ चिंतामणि )
मैंने सुना है कि कई उपनिषदोंमें ऋषन को ही अर्हत् लिखा है । अर्हत् नामका कोई राजा नहीं था. ऋषभ खुद अर्हत् थे. परस्पर द्वेषके कारण भागवतका कर्ता कहता है कि अर्हत् कलियगर्भ ऋपके चरित्रपर चलेगा और जैनमतका उपदेश काँगा. शायद उसने जनमतका ज्यादा प्राचीन बनाना नहीं चाहा परंतु उसके कहनेके मुताविक भी अगर अर्हतने ऋषभके चरित्रकी नकल की तो यह वह चरित्र था जिसपर जैनमत चलाया गया ! इस आशयले भी ऋषभने ही जनमतका बीज बोया था एसा सावित होता है।
नीलकंठ महाभारतका प्रतिष्टित टीकाकार है ऊपरकी रायकी पुष्टि में उसका भी प्रमाण है. महाभारतके शांतिपर्व मोक्षधर्म अध्याय २६३ श्लोक २० की टीकामें नीलकंठ कहता है कि अर्हत् वा जैन वृषभके शुभ आचरणको देखकर मोहित होगये थे
"ऋषभादीनां महायोगिनामाचारं दृष्ट्वा अर्हतादयो मोहिताः" महाशयों ! यह अध्याय पढनके लायक हैं। इसमें तुलाधार और जाजलिका संवाद है. तुलाधार अहिंसाका पक्ष लेता है और वैदिक यज्ञोंके कुल हेतृओंका खण्डन करता है और जाजलि यज्ञमें जो जीवहिंसा होती है उसको पुष्ट करता है।
इस प्रकार ब्राह्मणोंकी पुस्तकोंके मुताविक ऋषभ जैनमतके चलानेवाले थे । उन्होंने पहले पहले उन सिद्धांतोंका उपदेश किया जिनसे जैन मतकी नींव जमी. जहां तक मैं खोज करसका किसी भी हिन्दू शास्त्रमें पार्श्वनाथको जनमतका चलानेवाला नहीं बतलाया । इस विषयमें मेरी कई विद्वान शास्त्रियोंसे बातचीत हुई और उन सबने मुझसे यही कहा कि ऋषभ ही जैनमतके चलाने वाले थे।
इस तरह महाशयों ! आप देखसते हैं कि जैन और ब्राह्मण ग्रंथोंके मुताबिक ऋषभ ही जैनमतके चलानेवाले थे फिर क्या यह आश्चर्यकी बात नहीं है कि कोलबुक ( Colebrooke ) बहलर ( Buhler ) और जैकोबी (Jacobi ) जस विहान् अंग्रेज अपनी मनघड़त कल्पनाओंको प्रगट करें और पार्श्वनाथको जनमतका चलानेवाला बतायें।