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JAINISM IN SOUTH INDIA
... ... ब्रोहका ... ... वैरिकृतान्त ... ... ... दोरे इछासिरद ...... नृपकाळातीतसंवत्सर ... ...... नेव विकारि ... ल्गुनशुद्ध प्र ... ...... पणद पोलद ...... नमभिरिसि ...... दिमिर्यस्य ...... स्वदत्ता ... ... पंसद ......... बाड भोगपतिगल् कादु ... ... हा श्री [1]
हिन्दी सारानुवाद-अनेक बिरुदधारी अकालवर्ष पृथ्वीवल्लभका राज्य उत्तरोत्तर अमिवृद्धिमान् था। और अनेक बिरुदधारी कुवलालपुरवरेश्वर पेर्मानडि (गंगनरेश बूतुग द्वितीय) गङ्गवाडि ९६ हजार तथा बेलवल ३०० पर शासन कर रहा था।...शिष्टजन पर स्नेह करने वाले इस सामन्तने, जो कि विरोधियोंके लिए यमराज था .... एडोदोरे २०००....
शक संवत् .... बीतनेपर विकारि संवत्सरके फाल्गुन सु. १.... कोपणके क्षेत्र .... शापात्मक श्लोक। भोगपति (शासनाधिकारि)द्वारा गांव दानकी सुरक्षाके लिए प्रार्थना । मंगल महाश्री।
[४९] यलबर्गी गांवसे प्राप्त एक मूर्तिके पीठपर-प्राचीन कन्नडमें
(लगभग १२ वी शताब्दि इ.) स्वस्ति [1] श्रीमूलसंघ देसिय गणद मादणदणायक माडिसिद बसदिगे रायराजगुरु मंडलाचार्यरप्प श्रीमद् माघनंदि सिद्धान्तचक्रवर्तिगळ प्रियगुडगळु श्रीकोपणतीर्थद पम्मेयर पृथिगौडन प्रियांगने मलौवेगे पुट्टिद सुपुत्ररु बोपण्णरा तं... लांजलि मुख्यवागि प्रल्ल नोपिगेयु चौविस तीर्थकर माडिसि कोहरु [1] मंगळमहा श्री श्री श्री ॥
हिन्दी सारानुवाद-राय राजगुरु मण्डलाचार्य माघनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तिके प्रिय शिष्य तथा कोपणतीर्थ निवासी एम्मेयर पृथिगौड और उसकी पत्नी मलौवेके पुत्र बोपण्णने अपने धार्मिक वतोंकी समाप्ति पर चौवीस तीर्थङ्करकी यह मूर्ति बनवाकर श्रीमूलसंघ देसिय गणसे सम्बन्धित तथा मादण दण्डनायक द्वारा निर्मापित बसदिके लिए समर्पित किया।
[५०] यलबगी गांवसे प्राप्त एक मूर्तिके पीठपर-प्राचीन कन्नडमें
(लगभग १२ वी शताब्दि इ.) ___ स्वस्ति [1] श्रीमूलसंघ देसियगण पुस्तकगच्छ यिंगळेश्वरद बळिय माधवचंद्रभट्टारकर गुहु श्रीमद् राजधानीपट्टणं परंवरगेय कुळाप्रि(ज्य) सेनबोध भाचण्ण यवरमग देवणनु सिद्धचक्रद नॉपि श्रुतपंचमी नोपिगे माडिसिद पंचपरमेष्ठिगळ प्रतिमे [1] मंगळ [1]
हिन्दी सारानुवाद-यह पञ्चपरमेष्ठीकी मूर्ति सिद्धचक्र और श्रुतपञ्चमी व्रतोंके उत्सव पर मूलसंघ देसिय गण, पुस्तकगच्छ इङ्गळेश्वर बळिके आचार्य माधवचन्द्र भट्टारकके गृहस्थ शिष्य तथा एरम्बरगे निवासी आचण्ण सेनबोव (पटवारी) के पुत्र देवणने बनवायी । मङ्गल हो।
[५१] यलबर्गी गांवमें उपलब्ध एक मूर्तिक पीठपर-पाचीन कबडमें
(लगभग १२ वी शताब्दि इ.) स्वस्ति [1] श्रीमन्महामंडळेश्वर वीरविक्रमादित्यदेवन महाप्रधान तंत्राधिष्ठायक देवणार्यनायक ...... पुण्यकांति चलदकराम ...... [सुहाद्रि ] मूलसंघ देसियगन ... ... चिंतामणि सज्जनजनचूडामणि ... ... नायकिति ... ....... पार्श्वनाथचैत्य व यमनसिसि यास्थानमं तम्मगे ... ... माडिसि बिहळु [1]