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Grantha Bhandars of Ajmer Division.
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(2) PRASNOTTAR SRAVAKĀCĀRA :- by Sakal Kirti in Sarhskrit. This is an old manuscript and was copied in Samvat 1597 (1540 A.D.)
(3) HOLI KATHA :- by Muni Subha Candra. It was composed in the year 1697 A.D. It is also a rare work and has not been found so far in any of the other Bhandars of Rajasthan.
(4) INDRIYA_NĀTAK :- by Trilok Patni. This is a drama in Hindi. This work is also a rare one. The drama was completed at Kekari (Ajmer) in the year 1898.
Continued from page. 68
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धनद नाम गोवालिया, एक कमले करी चग | पूज्या जिनवर मन रली, फल पाम्यो उत्त ग ।।
एह कथा रस साभली, भवीयरण सयल सुजाण । पूजा जिनवर मन रली, प्रष्ट प्रकारे गुरण मारण || एक कमल फल वस्तरयो, स्वर्ग मूगती लगे चग । अनुदिन जेह जीन पूछे तेह न फले उत्त ग ॥ सासो धरम सोहमरणो, थोडी कीजे महत । as बीज जिम रूबडो, फली दीसे इति करकण्डु मुनीरास,
अनंत || पूजा फल समाप्त ॥
स्वस्ति सवत् १५६७ वर्षे द्वितीय चैत्रमासे शुक्लपक्षे द्वितीयादिने रविवासरे "मुमुक्षुणा सुमतिकीर्तिना कर्मक्षयार्थ श्रावकाचार ग्रन्थो लिखित ग्रन्थ संख्या २८८० ।
मुनि शुभचद करी या कथा, धर्मप्रेष्यमे छी जथा ।
होली कथा सुने जो कोइ, मुक्ति तथा सुख पावे सोय ।। १२५ ।। सबत सतरासे परि जोई, वर्ष पचावन अधिका और ।
साक गरिए सौला बीस, चेत सुदि सात कहीस ।। १२६ ।।
सा दिन कथा सपूरण मइ, एकसौतीस चोपई भई ।
सेस दिन में जोडी बात, पून्यू दिसा कुसला ॥१२७॥
3. उगरणीसे पचपन विषै नाटक भयो प्रमान |
गाव केकेडी धन्य जहां, रहे सदा मतिमान ||