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________________ Material for Research किलं ग्रहमपितं प्रथमं जिनेद्र स्तोष्ये किलाह निश्वय करि ग्रहमपि मै भी जु हों मानतुंग नाम प्राचार्य सो तं प्रथमं जिनेद्र सो जु हो प्रथम जिनेन्द्र श्रीश्रादिनाथ ताहि स्तोष्ये स्तवू गा । कहाकरि स्तोत्र करोंगी । जिनपाद युगं सम्यक् प्रणम्य जिन जु हैं भगवान तिनि को जु पद जुग दोई चरण कमल ताहि सम्यक् भाति मन वचन काया करि प्रणम्य नमस्कार करि के कंसो है भगवान को चरण द्वय भक्तामर प्रणतमौलिमणिप्रभारगां उद्योतक भक्तिवत जु है भ्रमर देवता तिनिकी प्ररणत नस्त्रीभूत जु है मौलि मुकुट तिन विषे जु है मरिण तिनिकी जु प्रभा तिनिका उद्योतक उद्योतक है। यद्यपि देव मुकुटनिका उद्योत कौटि सूर्यवत् है तथापि भगवान के चरण नख की दीप्ति भ्रागे वै मुकुट प्रभा रहित हो है तांती भगवान को चरण द्वय उनका उद्योतक है । बहुरि कैसी है चरण द्वय दलित पाप तमो वितानं दलित गरि कियो है पाप रूप तम प्रन्धकार ताको वितान समूह जाने । बहुरि कैसी है चरण द्वय युगादौ भव जले पततां जनानां मालवनं युगादौ चतुर्थ काल की प्रादि विषै भव जले ससार समुद्र जल विषै पततां पडे जुहै । जनानां मनुष्य तिनको मालवन भालवन है जिहाज समान है त क सो श्रादिनाथ कौन है जाको स्तोत्र में करोगी स्तोत्र: य सुरलोकनाथै स्तुतः स्तोत्रेः स्तोत्र हु कग्यिः जो श्रीश्रादिनाथ सुरलोक नाथै सुरलोक देवे लौक के नाथ इन्द्र तिनि करि संस्तुत स्तूयमान भया कैसे है इन्द्र सकल वाङ् मय तत्वोवधादुद्भूत बुद्धि पभिः सकल समस्त जु हैं वाङमय दशांग तिनका जु तत्व स्वरूप तिसका जु वोष ज्ञान तातै उद्भूत उत्पन्न है प्रकट बुद्धि ता करि पटुभि. प्रवीण है वे स्तोत्र कैसे हैं जिन करि स्तुति करी जगत्रिय उदारः प्रथं की गम्भीरता करि श्रेष्ठ ॥२॥ The last Doha of the work in which the author mentions his name runs as under -- अन्तिमः - भक्तामर टीका को सदा पढ़े सुन जो कोई । हेमराज सिव सुख लहै तम मन वछित हाइ । ।। इति श्री भक्तामर स्तोत्र टीका समाप्तम् ॥ [ 313 49. NĀSAKETA PURĀNA--- Nåsaketa purana of Näsketopakhyāna is a very interesting and popular story The original story is in Samskrit which was translated into Hindi prose by. Nanda Dasa for his students. The date of compositian of the work is not given but it appears that it is a work of 17th Century A. D. The language of the work is not hiterary but it is described in a very simple language Sadal Misra's NASIKETOPAKHYAN, which was written in the 19th Century has the influence Sadal Misra's of Nand Dasa's work. One example of Hindi Näsiketopakhyān is given below: prose from
SR No.011017
Book TitleJaina Granth Bhandars in Rajasthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1967
Total Pages394
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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