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Jaida Grantha Bhandara in Rajastian.
मत न कोह सहाइ तेरे, तू क्या पच पच मरदा । नरक निगोद दुःख सिर पर, पाह मकमूलन मरदा ।। जनम जनम विच होय विकाना, हथ विषया दे वरदा । केइ ऊमर मरवेसी भोंदू, मेरी मेरी करदा ।।१२।। गज सुखमाल सुणी जिनवाणी, सकल विषय तिन त्यागी । नमस्कार कर नेमिनाथ को, भए मसान विरागी ।। सन बसुरा मामन वच काया, सिधा पद लव लागो । कहत दास बनारसी, मत गढ केवली मुनत बुध के रागी ।।१३।।
॥ इति श्री माझा समाप्त। ।।
44. ADHYATMA SAWAIYĀ:
Adhyatma Sawaiya is a work of Rūpacandra, an Adhyatmik poet of 17th Century. The work has been discovered in the Jaina Sastra Bhandar of Tholia Jaina temple, Jaipur. This is a good work on Adhyatma or spiritualism The description is full of life. Not only with the point of language it is also work of high standard as regards literary beauty and manner of description. The poet describes
Atma, Parmatma and the world in a very simple method. It contains 102 stanzas of Sawaiya, Kundalia and Chappaya metres. Date of composition is not given in the work. The first Sawaiya in which importance of soul is described, is as follows:
मनुभो अभ्यास मै, निवास सुध चेतन को,
मनुमा सरूप सुष बोध को प्रकास है । अनुभी अनूप उपरहत अनत ग्यान,
अनुभौ पनीत त्याग ग्यान सुख रास है ।। मनुमौ अपार सार पाप हा को प्राप जाने,
प्रापहो मै व्याप दीस जामैं जड नास है । अनुभौ मरूप है सरूप चिदानद बद,
मनमो प्रतीत पाठ क्रमस्पो अफास है ॥१॥
In one of the stanza the poet describes the various qualities of noble persons in the following way:
परि प्रोगन परिहरै बरै गुनबंत गुन सोई। '
वित्त कोमल नित रहे, झूठ जाके नहीं कोई।