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Jaina Grantha Bhandars in Rajasthan.
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दोसइ दस गाऊ मही, दश गाऊ शरथान । दशगांऊ परिण नर्मदा, भाम्रपत्र स्वस्थान 11 ब्राह्मण भाट मला बसs, व्यवहारी था विशेषि । राजकुली रूडी तिहां, छह लछ जीसे रेख ॥ उम्रशेन कुलि उग्रवल, राणउ नाग नरेश जा सायर नर्मद मही, तां वा चूलउ देश चतुर सभा वदन तरणउ, मझ कोई लागउ वास । गणपति जपइ तउ करिउ, पद केत ले प्रकाश ॥ कवि ज्ञाति कायस्थ बड, बालि मइ विख्यात । पूरुए पद बघता, दीहथ पादह सात 11
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वेद भुजंगम बाण शनि, विक्रम वरस विचार । श्रावणनी सुदि सप्तमी, स्वाति मगलवार 11 साध्य योग सूधउ हतु, वाणिज्य कर विशेष । रवि परतुए पचागनी, चउथडी आशेष 13 जयउ जयउ जगदीश्वरी, प्रानदी प्रारात्रि 1 वक्ता श्रोता वछली, तु थाए त्रय मात्र
Beginning of the work:
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शुक्ल पक्ष तृतीया ३ तिथौ भूमेवासरे श्री स्थंमतीर्थे पूज्य पंडित श्री हर्ष कम गरि शिष्य पं० लक्ष्मीराजेन लिखितमस्ति विनोदार्थे मुनि उदयकल्याणगरिण वाचनार्थम् ॥
21. NEMI NĀTHA RĀSA:--
The Rasa was composed by Muni Punya Ratana in the year 1529 A. D. It deals with the life of Neminatha, the 22nd Jaina Tirthankara, It is a small work consisting of only 69 stanzas, The beginning and the end of the manuscript are as follows:
सारदा पय प्रणमी करी, नेमि तरणा गुरण होइ घरेबि । रास मणु रलोया गरणउ गुण गरुवउ गाइ सु संखेवि ॥ हू बलिहारी जादव एक रस, उरज पीछउ बालि । अपराधन मह को कीयउ, काइ छोडs नव योवन वाल || सोरीपुर सोहामणउ राजा समुद्र विजय नव 오피 1 शिवादेवी राणी तसु तरणी, अनोप रूप रंग समान 11