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Material for Research
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work. As a matter of fact he created a very good atmosphere of reading old Puranas and other works amongst Jainas. There are about 15 works written by this scholar and amongst them are Punyasrava Katha Kosa (1720 A.D.), Adipurana Bhasa (1716 A.D.), Padam Purana Bhasa (1766 A.D.), Harivansa Purana Bhasa (1778 A.D.) and Adhyatma Bārah Khari (1741 A.D.) are very well known. Except the last work all are in Hindi prose. His Adhyatma Barabkhari is a voluminous work hasing .more than 3000 verses. Only one copy of this big manuscript has been found so far in the Jaina Sastra Bhandār of Terapanthi Temple, laipur. His works like Ādipurāna and Punyāsrava Kathā Kośã have been published. One example of his Hindi prose is given below:
तब रावण ने उछलकर इन्द्र के हाथी के मस्तक पर पग धर मति शीघ्रता कर गज सारथी को पाद प्रहार त नीचे डारा । पर इन्द्र को वस्त्र से बाधा पर बहुत दिलासा देकर पकड अपने गज पर ले पाया । पर रावण के पुत्र इन्द्रजीत ने इन्द्र का पुत्र जयन्त पकडा । अपने सुभटो को सौपा और पाप
द्र के सुभटो पर दौड़ा । तब रावण ने मने किया । हे पुत्र ! अब रण से निवृत्त होवो क्योकि समस्त विजया के जे निवासी विधाधर तिनका मिर पकड लिया है । अब समस्त अपने अपने घर जावो । सुग्व से जीवो। शालि से चावल लिया तब पराल का कहा काम ! जब रावण ने ऐसा कहा तब इन्द्र-जीत पिता की प्राज्ञा से पीछे बाहडा। पर सर्व देवो की सेना शरद के मेघ के समान भाग गई जैसे पवन कर शरद के मेध विलय जाय । रावण की सेना मे जीत के वादित्र बाज, ढोल नगारे शंख झांझ इत्यादि अनेक वादियो का शब्द भया। इन्द्र को पकडा देख कर रावण की सेना प्रति हर्षित भई।
Padma Purana p. 133
26. DILA RAMA.
Dila Ram's forefathers came from Khandela a part of Jhunjhunu district of Rajasthān. First of all they settled at Todaräisingh but on the request of Bundi Darbar they shifted to Būndı. He was a Khandelwala and Patni was his Gotra. His father's name was Bahūbli. Dila Râm wrote two works in Hindi, one is called Dulārāma Vilas and the other is Ātma Dwadasi. The first work was completed in 1768 V.S. It is a good co:lection of small works of the poet. He has written some description of Bundi at the end of the work, which is as follows:
वन उपवन चह नदन से मधि गिर मेर नदी गंग सम सोमहि बढावती। प्रतल विलास मे वसत सबै धनपति धन मोंन मोंन रभातिय गावती। महल विमान सभा मुर मधि राज राव,बुद्ध ईद जिम जाके किति लछि मावती । अ पनि सुनियत ननि को मिलाष पूजत लखै ते ऐसी बूंदी प्रमरावती।