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No. III SANGHA BHANDARA
71 इहु प्रिय ! परिसंतउ न गणिज्जइ जायवि धमसुरि गुरु वंदिजउ । किजउ माणुस-जमु सफलु ॥ ३ ॥ वंदंतह धमसुरि गुरु भाद्रव मासु पस्तु । मयगलि जिम्व गुलुवि घणि जलु किउ महिहि प्रभूतु ॥ ४ ॥ तुहु सहि ! वियसिउ के उडउ सेरउ धवल विलासु । जससुरि-नयण-पराभविउ [नं] सेवइ वण-वासु ॥ ५ ॥ पउणि पहरि जिण पंचसय पढिविणि विम्हिउ लोउ । तसु धमसूरि गुरु तणिय वड हुयउ न होसइ कोइ ॥ ६ ॥ गुजरि बोलइ चालु प्रिय ! मज्झु मणोरह पूरि । देसण सुणहु सुहावणिय वंदेविणु जससूरि ॥ ७ ॥ महियलि विमलउ सयलु जलु वय पहुतउ आसोय मासु । धमसुरि-केर चित्तु जिम्व वय निम्मलु ठिउ आगासु ॥ ८ ॥ चंदा चंदा चंदडा वय चडावय चंदिणडउं करि चंगु ।
मंडिन महि तुहं हंसडा ! वय भमरुल्ला कमलिहिं न रजु ॥ ९ ॥ Endi
पीपलि करिवि स पिंड पहिरि कन्हिहि चल कुंडल । झलझलंत कंकण सनाह हत्थीहिं पुण हत्थल ॥ ४१ ॥ नव-सरु मोत्तिय-हारु कंठि कलकंठि ! ठवेविणु । पाल विसाल चलंत चंचलु पायहि पहि पहिरेविणु ॥ ४२ ।। चालिन उतावली सहिय ! पुरि पुरि विहरंतौ। जायवि धमसुरि नमहु सु पुणु जसरि गुणवंतौ ॥ ४३ ॥ माणिणि! माण महंतु मयगल मउ मोडिवि ।
सहि ! मंडलि वणि पत्तो आसाढ सु केसरि ॥ ४४ ॥ मेहुडलइ नवि गयणि धुडुक्कइ तहिं खणि विरहिणि-हियउं खुडुक्कइ । पसरिउ इंद्र-धणुहु फुड फारु किउ विजुलिय तरल झलकारु ॥४५॥
विदलिय कंद-केलि-कंपण-लालिय-तणु ।
व फुरिउ पवयणु पयट्टो दाहिण रवि-संदणु ॥ ४६ ॥ उचिय चडि वायस खजूरि लवि महुरई सरि जोइवि दूरि । आवंतउ तउ धमसुरि नाहु पहुचि जिंव तसु वंदण जाहु ॥ ४७ ॥
अडाइयवरिसेहिं जसु लोए समागमो । अहियमासु संपत्तो सो सहिय ! मणोरमो ॥४८॥