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________________ No III. SANGHA BHANDARA जह वर वक्खाणे विहु मंदमई सुणइ कइ वि हु पयत्थे । जह सामन्ननरेंदो किंची भुंजेइ भरहस्स || ९ | तह संतिणाह-चरिए अपमाणगुणे अणेगवुत्तंते । अचंतमंदमइणा मए वि किंची समक्खायं ॥ १० ॥ जो यियसत्तिवियलो उप्पाडइ गरुयभत्तिए भारं । हास - ट्ठाणं जायइ णियमा सो सत्तिजुत्ताणं ॥ ११ ॥ तह अहमवि मंदमई पयट्टमाणो इमंमि कवंमि । जाउ (ओ) विउसजणाणं हास - द्वाणं महमईणं ॥ १२ ॥ अहवा हि णहि एयं हसइ न कइया वि सज्जनो अन्नं । जो हिययमज्झ - कलुसो सो पर जइ दुज्जगो हसइ ॥ १३ ॥ तेणं न वन्नणिज्जो सुयणो इह होइ कवयाराण | पेच्छतो वि हु दोसं गूहइ कवंमि जो अहियं ॥ १४ ॥ वन्नामि दुज्जणे चिय एक्कं इह जीवलोयमज्झमि । जो लेइ पयत्तेणं दोसं कवाउ उच्चिणिउं ॥ १५ ॥ उच्च - दोसं कां णिद्दोसं होइ तेण सो चेव । वन जोगो जायइ कवीण उवयारिभावेण ॥ १६ ॥ अहवा विहु किमणेणं सवाण वि पत्थणं करेमि अहं । अवणेत्तु सदो से एवं सोह मह कवं ॥ १७ ॥ एवं एय सम्मत्तं सुहयरचरियं संतिणाहस्स रम्मं जुत्तं चक्काउहस्स वरगणवइणो संकहाए सुहाए । जीवाणं संतिहेउं दलियकलि-मल... चर्च नंदिंद चंदं सुतं निचकालं सित्र - सुहजणयं [हो ] इ जीवाग सम्मं ॥ १८ ॥ सम्मं सम्मत्तमूलं दुदसभवकथं सबकल्लाण-ठाणं 837 भव्वाणं सव्यमाणं ललियपयजुयं सिद्धिसोक्खेकछेउं । संतं संतिष्पत्तं तिहुणतिलयं वन्नणिज्जं बुहाणं देवचंदोहवंद कुणउ इह सया सव्वजीवाण संतिं ॥ १९॥ परिहरियसुदारो वज्जियासेसखारो धरियवयसुभारो दुक्खलक्खोहदारो । तव - व - सिरि-वरहारो दोस- चोरिक्क चारो चरण घणअपारो अंतरंगारि-मारो ॥ २० ॥ कयपवरविहारो चत्तसव्वाणयारो पणमिरसुर-वारो मोह - वल्ली - कुठारो | दुह- दव-जलकारो केवलन्नाणकारो कयबहुअणगारो भव्वलोउवयारो ॥ २ ॥ 43
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
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